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________________ १. जैनकुमारसम्भव : जयशेखरसूरि मेघदूत की भांति कालिदास के कुमारसम्भव ने किसी अभिनव साहित्यिक विधा का प्रवर्तन तो नहीं किया, किन्तु महाकवि के इस काव्य से प्रेरणा ग्रहण कर जिन तीन-चार कुमारसम्भव-संज्ञक कृतियों की रचना हुई है, उनमें, जयशेखरसूरि का जैनकुमारसम्भव (जै. क. सम्भव), अपने विविध गुणों तथा महाकाव्य-परम्परा के सम्यक् निर्वाह के कारण विशेष उल्लेखनीय है । कालिदासकृत कुमारसम्भव के समान जैन. कु. सम्भव का उद्देश्य कुमार (भरत) के जन्म का वर्णन करना है, किन्तु, जिस प्रकार कुमारसम्भव के प्रामाणिक भाग (प्रथम आठ सर्ग) में कात्तिकेय का जन्म वणित नहीं है, उसी प्रकार जैन कवि ने भी अपने काव्य में भरतकुमार के जन्म का प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं किया है । इस दृष्टि से दोनों काव्यों के शीर्षक उनके प्रतिपादित विषय पर पूर्णतया चरितार्थ नहीं होते । परन्तु जहां कालिदास ने अष्टम सर्ग में, पार्वती के गर्भाधान के द्वारा कुमार कात्तिकेय के भावी जन्म की व्यंजना करके काव्य को समाप्त कर दिया है, वहां जैनकुमारसम्भव में सुमंगला के गर्भाधान का संकेत करने के पश्चात् भी (६/७४) काव्य को पांच अतिरिक्त सर्गों में घसीटा गया है । यह अवांछनीय विस्तार कवि की वर्णनात्मक प्रकृति के अनुरूप है, पर इससे कथानक की अन्विति छिन्न हो गयी है और काव्य का अन्त अतीव आकस्मिक हुआ है। जैनकुमारसम्भव का महाकाव्यत्व भामह से लेकर विश्वनाथ तक, संस्कृत के प्राचीन समीक्षक आचार्यों ने महाकाव्य की अन्तरात्मा की अपेक्षा उसके स्थूल शरीर का अधिक निरूपण किया है। इस स्थूलतावादी दृष्टिकोण के कारण भामह के पश्चात् काव्याचार्यों के महाकाव्य-सम्बन्धी लक्षण उत्तरोत्तर संकलनात्मक होते गये । चौदहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध साहित्यशास्त्री विश्वनाथ ने अपने लक्षण में पूर्ववर्ती महाकाव्य-परिभाषाओं में निर्दिष्ट सभी स्थूलास्थूल तत्त्वों का समाहार करने की चेष्टा की है। इन परिभाषाओं ने महाकाव्यकारों के लिये एक दुर्भेद्य चारदीवारी निर्मित कर दी है। उस परिधि के बन्धन में ही संस्कृत महाकाव्यों की रचना हुई है । महाकाव्य में सभी १. आर्यरक्षित पुस्तकोद्धार संस्था, जामनगर, सम्वत् २००० .. २. साहित्यदर्पण, ६/३१५-२४
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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