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________________ ३२० जैन संस्कृत महाकाव्य कि हज से लौटते समय वह उसे अपने साथ दिल्ली ले गयी। मोजदीन ने महामात्य का सम्मानपूर्वक स्वागत किया। वस्तुपाल ने अपनी व्यवहारकुशलता से पूर्व-पराजित शत्रु को मित्र बना लिया। उसकी इस कूटनीति के कारण धौलका का राज्य एक शक्तिशाली शत्रु के आतंक से मुक्त हो गया। आठवें प्रस्ताव में वणित वीरम का वृत्त कवि की कल्पना से प्रसूत है। इतिहास वीरधवल के वीरम नामक पुत्र से अनभिज्ञ है । अतः वस्तुपाल के साथ उसके दुर्व्यवहार तथा अपने पिता के निधन के पश्चात् राज्य पर बलपूर्वक कब्ज़ा करने के प्रयास की बात मिथ्या है। ___ वस्तुपालचरित से स्पष्ट ज्ञात होता है कि वीरधवल के अधिकारी वीसलदेव तथा वस्तुपाल में वैमनस्य पैदा हो गया था। काव्य में उल्लिखित कारण तथा वैमनस्य की घटनाएँ" (जैन साधु को दण्डित करना) तो अतिरंजित प्रतीत होती हैं, किन्तु इनसे यह संकेत अवश्य मिलता है कि वस्तुपाल तथा नवीन शासक के बीच मनमुटाव हो गया था। शासन-परिवर्तन के साथ राजा तथा मन्त्री के सम्बन्धों में परिवर्तन होना आश्चर्यजनक नहीं है। जिनहर्ष का कथन है कि अपने मामा की दुष्प्रेरणा से वीसलदेव ने तेजःपाल को मन्त्रित्व से च्युत कर दिया था तथा उसके स्थान पर नागड़ को नियुक्त किया था५ । अन्य स्रोतों से ज्ञात होता है कि नागड़ को मन्त्रिपद तेजःपाल के निधन के पश्चात् ही प्राप्त हुआ था। वस्तुपालचरित के अनुसार वस्तुपाल का देहान्त सम्वत् १२६८ में हुआ था। महामात्य के समवर्ती बालचन्द्र ने यह घटना सं० १२६६ की मानी है। उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि एक-दो स्थलों को छोड़कर वस्तुपालचरित का ऐतिहासिक पक्ष प्रामाणिक तथा विश्वसनीय है। ___ काव्य की दृष्टि से वस्तुपालचरित का मूल्य नगण्य है किन्तु यह वस्तुपाल तथा गौणतः तेजःपाल और चौलुक्यवंश के इतिहास का अत्यन्त उपयोगी स्रोत है । जिनहर्ष में समर्थ ऐतिहासिक बुद्धि है। २२. वस्तुपालचरित, ७.२२१-२८, प्रबन्धकोश, पृ० ११६ २३. वही, ८.३७४-६१, तथा ८.४३०-४३१ . २४. वही, ८.३२०, ३२२,५२१ २५. वही, ६.४७८-४७६ २६. लिट्रेरी सर्कल ऑफ महामात्य वस्तुपाल, पृ० ३४ २७. वस्तुपालचरित, ८.५३६
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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