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________________ वस्तुपालचरित : जिनहर्षगणि ३१६ द्वितीय तथा तृतीय प्रस्ताव में वर्णित ऐतिहासिक घटनाएँ सच्ची हैं । प्रबन्धकोश से पता चलता है कि वीरधवल ने बनस्थली के शासकों को पराजित किया था । भद्रेश्वरनरेश भीमसिंह को समरांगण में परास्त करने में असफल होकर वीरधवल के द्वारा उसके साथ सन्धि करने का उल्लेख भी प्रबन्धकोश में हुआ है । मरुस्थल के राजकुमारों को अपने पक्ष में मिला कर भीमसिंह को जीतने की घटना के सत्यासत्य का परीक्षण करने का कोई साधन नहीं है । तेज:पाल द्वारा गोधानरेश घूघुल को युद्ध में बन्दी बनाने तथा पिंजड़े में डालकर चौलुक्यनरेश के सामने लाने तथा अपमान न सह सकने के कारण घूघुल द्वारा आत्महत्या करने की पुष्टि भी प्रबन्धकोश से होती है" । कीत्तिकौमुदी, प्रबन्धकोश, पुरातन - प्रबन्धसंग्रह आदि ग्रन्थों से तुलना करने पर चतुर्थं प्रस्ताव में वर्णित प्रसंगों की प्रामाणिकता में संदेह नहीं रह जाता । वस्तुपालचरित की भाँति इनसे भी विदित होता है कि वस्तुपाल खम्भात का राज्यपाल नियुक्त किया गया था । उसने अयोग्य, प्रमादी तथा घूसखोर अधिकारियों को दण्ड देकर प्रशासन में व्याप्त मात्स्यन्याय का उच्छेद किया तथा इसी निमित्त धनाढ्य समुद्री व्यापारी नादीक तथा उसके पक्षपोषक लाटनरेश शंख को दण्डित किया । वीरधवल के शासनकाल में दिल्ली के सुल्तान ने गुजरात पर आक्रमण किया था किन्तु नीतिनिपुण वस्तुपाल की कूटनीति ने उसे विफल कर दिया था, इस तथ्य के समर्थन के लिये प्रचुर ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध है । जैन कवि जयसिंहसूरि ने अपने 'हम्मीरमर्दन' नाटक में इस घटना को रूपायित किया है । काव्य के अनुसार वस्तुपाल ने आबू के परमार - शासक धारावर्ष के सहयोग से म्लेच्छ-सेना को आबूपर्वत की दुर्गम घाटी में घेर लिया । सामूहिक प्रहार से वह छिन्न-भिन्न हो गयी ।" यही वर्णन प्रबन्धकोश में पढ़ा जा सकता है। मोजदीन की पहचान विद्वानों सुल्तान इल्तमश (१२११-१२३६ ई० ) से की है । समकालीनता की दृष्टि से यह बहुत उपयुक्त है" । वस्तुपालचरित तथा प्रबन्धकोश में इस बात पर भी मतैक्य है कि हजयात्रा के लिये जाती हुई मोजदीन की माता को वस्तुपाल के अनुचरों ने, उसके ही भड़काने से, लूट लिया था किन्तु बाद में वस्तुपाल ने उसके साथ सद्व्यवहार किया था । उक्त स्रोतों से यह भी ज्ञात होता है कि वस्तुपाल के बर्ताव से वह इतनी प्रसन्न हुई १८. प्रबन्धकोशः पृ० १०३, १०४, १०७ १६. वस्तुपालचरित, ७.३४ २०. प्रबन्धकोश, पृ० ११७ २१. लिट्रेरी सर्कल ऑफ महामात्य वस्तुपाल (पूर्वोक्त), पृ० ३१, पा. टि. ४.
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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