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________________ १४. कुमारपालचरित : चारित्रसुन्दरगणि प्रख्यात चालुक्यनरेश कुमारपाल की धर्म-प्रभावना का जिन प्रबन्धों में कृतज्ञतापूर्वक प्रशस्तिगान किया गया है, उनमें चारित्रसुन्दरगणि का कुमारपालचरित' अधिक ज्ञात नहीं है। इतिहास-प्रथित नायक के चरित पर आश्रित होने के कारण कुमारपालचरित की गणना सामान्यतः ऐतिहासिक काव्यों के अन्तर्गत की जाती है, किन्तु इसका इतिहास-तत्त्व बहुधा अस्पष्ट तथा भ्रामक है। काव्य का अधिकांश कुमारपाल तथा उसके आध्यात्मिक गुरु हेमचन्द्रसूरि के सम्बन्धों तथा कलिकालसर्वज्ञ के निर्देशन में उसके द्वारा किये गये जैन धर्म के प्रचार-प्रसार के विस्तृत वर्णनों में खपा दिया गया है। कुमारपालचरित का महाकाव्यत्व __ कुमारपालचरित आलोच्य युग की उन रचनाओं में है, जिनमें महाकाव्य के परम्परागत लक्षणों का आंशिक पालन हुआ है। इसकी रचना सर्गबद्ध काव्य के रूप में हुई है, किन्तु इसकी विशेषता यह है कि इसके सर्गों को आगे वर्गों में विभक्त किया गया है, जो स्वतन्त्र सर्गों से किसी प्रकार कम नहीं हैं। काव्य का कथानक कुमारपाल के जीवनवृत्त पर आधारित है, जो इतिहास का प्रतापी धीरोदात्त शासक तथा जैन धर्म का बहुमानित पोषक है। कुमारपालचरित में वीररस की प्रधानता है, यद्यपि इसे काव्य के अंगी रस के पद पर आसीन करना सम्भवतः कवि को इष्ट नहीं है । करुण, रौद्र, बीभत्स तथा अद्भुत रसों को भी यथोचित स्थान मिला है। प्रस्तुत काव्य का उद्देश्य 'धर्म' माना जा सकता है । महापण्डित आचार्य के आदेशानुसार समूचे शासनतन्त्र की सहायता से आहत धर्म का अप्रतिहत प्रसार करना काव्य का प्रमुख लक्ष्य है। छन्दयोजना में चारित्रसुन्दर ने मान्य परम्परा का पालन नहीं किया है । काव्य के अधिकतर सर्गों में ही नहीं, वर्गों में भी, नाना वृत्तों का प्रयोग किया गया है। महाकाव्य की रूढ परम्परा के अनुसार कुमारपालचरित का आरम्भ आशीर्वादात्मक मंगलाचरण से होता है, जिसमें महावीर स्वामी, वाग्देवी तथा आचार्य हेमचन्द्र की स्तुति की गयी है । काव्य का शीर्षक तथा सर्गों का नामकरण और नगरवर्णन, सज्जन-प्रशंसा आदि रूढियों का निर्वाह भी शास्त्र के अनुकूल है। १. जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर से पत्राकार प्रकाशित, सम्वत् १९७३
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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