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________________ २६२ जैन सस्कृत महाकाव्य नहीं है। हम्मीरकाव्य के अनुसार दुर्ग का पतन श्रावण कृष्णा ६, रविवार, सम्वत् १३५८ को हुआ । अमीर खुसरो की तिथि उससे दो दिन पूर्व है। हम्मीर के स्वर्गारोहण के बाद जाजा ने दो दिन तक और युद्ध किया था। नयचन्द्र ने उसी दिन दुर्ग का पतन माना है। तारीखे फरिश्ता में भी महिमासाहि के वीरोचित उत्तर का उल्लेख है। क्रोधाविष्ट होकर अलाउद्दीन ने उसे मस्त हाथी के पैरों तले कुचलवा दिया; किन्तु उसके शव को अच्छी तरह दफनवाया। साहस और स्वामिभक्ति का वह सम्मान करता था। उपर्युक्त विस्तृत विवेचन से स्पष्ट है कि नयचन्द्र के सृजन में तत्त्वग्राही इतिहाकार तथा कुशल कवि का रासायनिक सम्मिश्रण है। इसीलिये हम्मीरमहाकाव्य, कवित्व की दृष्टि से, उच्चकोटि की रचना है जो संस्कृत के उत्तम काव्यों से होड़ कर सकता है। दूसरी ओर, संस्कृत के ऐतिहासिक महाकाव्यों में कदाचित् यही एकमात्र ऐसा काव्य है जिसे 'इतिहासग्रन्थ' कहा जा सकता है। काव्य और इतिहास के इस सन्तुलन में ही 'ऐतिहासिक महाकाव्य' संज्ञा की सार्थकता निहित है। खेद है, संस्कृत-साहित्य में अधिक नयचन्द्र नहीं हुए। ८४. हम्मीरमहाकाव्य में ऐतिहय सामग्री, पृ. ४१ ८५. हम्मीरमहाकाव्य में वर्णित रणथम्भोर के इतिहास (सर्ग ४-१४) के विवेचन के लिए देखिये मेरा लेख-Hamriramahākāvya : A Unique Source of the History of Ranathambhor, Avagāhana, Saradarshahar, Vol. II. 1, P.41-46.
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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