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________________ २८२ जैन संस्कृत महाकाव्य वह उसे पुनः प्रधानामात्य के पद पर प्रतिष्ठित कर देता है । धर्मसिंह पुनः प्रधानमंत्री बन कर हम्मीर से अपने अपमान का पूरा-पूरा बदला लेता है । वह अपने बबर व्यवहार से भोज जैसे स्वामिभक्त व्यक्ति को शत्रु से मिलने को विवश कर देता है और प्रजा को अंधाधुंध करों से पीस कर उसमें विरोध की ज्वाला भड़का देता है। भोज की इस उक्ति में धर्मसिंह के चरित्र का सारांश निहित है। तद्राज्यस्य विनाशहेतुरधुनकोऽन्धः परं दीव्यति । १०.२८ रतिपाल वीर है, किन्तु हम्मीर की तरह उसकी वीरता लोभ से कलंकित है । उसकी स्वामिभक्ति भी अडिग नहीं है । अलाउद्दीन का 'एतद्राज्यं तवैवास्तु जयेच्छुः केवलं त्वहम्' (१३.) का बाण उसे तत्काल धराशायी कर देता है । भावी सत्ता के प्रलोभन से वह रणमल्ल सहित अलाउद्दीन के कूटजाल में फंस जाता है । किन्तु उसे इस कृतघ्नता का फल शीघ्र ही मिलता है। अलाउद्दीन विजय-प्राप्ति के पश्चात् उसकी खाल निकलवा देता है। महिमासाहि काव्य का अत्यन्त रोचक एवं प्रशंसनीय पात्र है । वह विदेशी तथा विजातीय मुग़ल है, जिसने अपने अनुजों के साथ हम्मीर का आश्रय लिया था। वह वीर योद्धा व अचूक धनुर्धर है। दुर्ग से एक ही तीर में उड्डानसिंह को धराशायी कर देना उसकी धनुर्धरता का सर्वोत्तम प्रमाण है । जिस गुण के कारण उसका व्यक्तित्व भास्वर स्वर्ण की तरह चमक उठता है, वह है उसकी अचल स्वामिभक्ति । जहाँ हम्मीर के प्राय : सभी विश्वस्त मित्र उसे धोखा देकर शत्रु पक्ष में मिल जाते हैं, वहाँ महिमासाहि, अन्त तक छाया की भाँति, उसका साथ देता है । अन्तिम समय में जब हम्मीर उसे किंचित् सन्देहात्मक दृष्टि से देखने लगता है, वह अपनी पत्नी तथा बच्चों को तलवार की धार उतार कर स्वामिनिष्ठा एवं त्याग का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है। समरांगण में पराजय के पश्चात् अलाउद्दीन के यह पूछने पर कि यदि 'तुम्हें छोड़ दिया जाये तो तुम मेरे साथ कैसा बर्ताव करोगे' उसका यह उत्तर 'यद्हम्मीरेऽकार्षीस्त्वम्' उसकी निर्भीकता तथा स्वामिभक्ति को घोतित करता है। जाजा नयचन्द्र का लोह-हृदय पात्र है। उसे जौहर सम्पन्न कराने का जो दारुण कार्य सौंपा गया, उससे पत्थर भी दरक सकता था। हम्मीर के प्राणोत्सर्ग के बाद वह दो दिन तक गढ़ की रक्षा के लिये युद्ध करता है । मुख्य कथा से असम्बद्ध इतिहास-प्रसिद्ध पृथ्वीराज का व्यक्तित्व दृढ़-प्रतिज्ञा, शौर्य तथा कूटनीतिक दारिद्र्य का सम्मिश्रण लेकर आता है । सहाबुद्दीन, भीमसिंह, उल्लूखान, निसुरतखान आदि के चरित्र का भी कमबेश चित्रण हुआ है। ५६. प्रचिकीर्षन्नथामर्षादन्धो वरप्रतिक्रियाम्। चक्रे तद्राज्यमुच्छेत्तुं स उपायान् दुरायतीन् ॥ वही, ६.१६६
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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