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________________ २३० जैन संस्कृत महाकाव्य नहीं होता क्योंकि उसमें वीरविजय के अभिषेक का उल्लेख ही नहीं है । वस्तुस्थिति यह है कि विजयदेव के जीवनकाल में ही, सम्वत् १७०६ में, कनकविजय (विजयसिंह सूरि) का स्वर्गवास हो गया था, इसलिये वीरविजय को आचार्य पद देकर विजयप्रभ के नाम से उन्हें अपना सर्वाधिकार समर्पित किया । इनका आज्ञानुवर्ती सारा जैन समुदाय देवसूर संघ के नाम से प्रसिद्ध हुआ और आज भी यह नाम जहाँतहाँ प्रचलित है। मेघविजय को प्राप्त माघ का दाय मेघविजय की शली का तो माघ से प्रभावित होना स्वभाविक था, किन्तु विषयवस्तु की योजना में भी वे माघ के ऋणी हैं। माघकाव्य के नायक कृष्ण वासुदेव हैं । मेघविजय का चरितनायक भी संयोगवश श्रेष्ठिपुत्र वासुदेव है। श्रीकृष्ण परम पुरुष हैं, वासुदेव आध्यात्मिक साधना से बहुपूज्य पद प्राप्त करते हैं । शिशुपालवध के प्रथम सर्ग में नारद के आगमन तथा आतिथ्य का वर्णन है। देवानन्द के उसी सर्ग में गुजरात, ईडर तथा उसके शासक का वर्णन किया गया है । माघकाव्य के द्वितीय सर्ग में कृष्ण, उद्धव तथा बलराम राजनैतिक मन्त्रणा करते हैं। देवानन्द के द्वितीय सर्ग में कुमार की माता तथा पितृव्य उसे वैवाहिक जीवन में प्रवृत्त करने के लिये विचार-विमर्श करते हैं । वह उनकी युक्तियों का उसी प्रकार प्रतिवाद करता है जैसे श्रीकृष्ण बलराम की दलीलों का। युधिष्ठिर के निमन्त्रण पर श्रीकृष्ण राजसूय यज्ञ में भाग लेने के लिये इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) जाते हैं । वासुदेव भी उपयुक्त गुरु की खोज में अहमदाबाद और सूरिपद प्राप्त करने के पश्चात्, जहांगीर के अनुरोध पर, दिल्ली जाता है। शिशुपालवध के तृतीय सर्ग में श्रीकृष्ण सेना के साथ इन्द्रप्रस्थ को प्रस्थान करते हैं । देवानन्द काव्य के तृतीय सर्ग में विजयदेवसूरि के प्रवेशोत्सव के समय ईडरराज कल्याणमल्ल की सेना के हाथियों तथा घोड़ों का अलंकृत वर्णन है । दोनों के चतुर्थ सर्ग में रैवतक का वर्णन है किन्तु माघ ने जहाँ सारा सर्ग पर्वतवर्णन पर लगा दिया है, वहाँ मेघविजय आठ-दस पद्यों में ही रैवतक का वर्णन करके अपने कथ्य की ओर बढ़ गये हैं । माघ की भाँति मेघविजय ने इस सर्ग में नाना (तेईस) छन्दों का प्रयोग किया है। माघकाव्य तथा देवानन्द दोनों के छठे सर्ग में षड्-ऋतु-वर्णन की रूढि का पालन किया गया है, जो यमक से आच्छन्न है। पाण्डित्यप्रदर्शन :समस्यापूर्ति देवानन्द की रचना माघकाव्य की समस्यापूर्ति के रूप में हुई है। इसमें माघ के प्रथम सात सर्गों को ही समस्यापूर्ति का आधार बनाया गया है । अधिकतर शिशुपालवध के पद्यों के चतुर्थ पाद को समस्या के रूप में ग्रहण कर अन्य तीन ६. देवानन्द महाकाव्य का मुनि जिनविजय द्वारा लिखित किंचित् प्रास्ताविकम्' पृ. ३.
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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