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________________ -१५२ जैन संस्कृत महाकाव्य पूर्ण रचना है । देवविमल का आदर्श नैषधचरित है, किन्तु जहां श्रीहर्ष ने अपने काव्य को शास्त्रीय वैदुष्य से आक्रान्त कर शास्त्रवत् दुर्बोध बना दिया है, वहां देवविमल ने अपनी सुरुचि से काव्य को विद्वत्ता-प्रदर्शन का अखाड़ा नहीं बनाया है। फलत: वह साहित्य को एक ऐसा प्रौढ़ काव्य देने में सफल हुआ है, जो महाकाव्य-परम्परा के अध्ययन के लिए अनिवार्य है तथा केवल कवित्व की दृष्टि से भी वह संस्कृत के उत्तम महाकाव्यों में प्रतिष्ठित है । परिशिष्ट उन्नतपुर प्रशस्ति ____ "स्वस्ति श्री सम्वत् १६५२ वर्षे कात्तिक वदी ५ बुधे येषां जगद्गुरूणां संवेगवैराग्यसौभाग्यादिगुणश्रवणांतश्चमत्कृतमहाराजाधिराजपातिशाहि श्री अकबराभिधानः गुर्जरदेशात् दिल्लीमण्डले सबहुमानमाकार्य धर्मोपदेशाकर्णनपूर्वकं पुस्तककोशससर्पणं, डाबराभिधानमहासरोमत्स्यवधनिवारणं, प्रतिवर्ष पाण्मासिकामारिप्रवर्तनं, सर्वदा श्रीशत्रुजयतीर्थ मुंडकाभिधानकरनिवर्तनं, जीजियाभिधानकरकर्त्तनं, निजसकलदेशदाण मृतस्वमोचनं, सदैव बंदीयऋणनिवारणमित्यादिधर्मकृत्यानि प्रवतितानि तेषां श्रीशजसे सकलदेससंघयुतकतमात्राणां भाद्रपदशुक्लकाशीदिने जातनिर्वाणां (णानां) शरीरसंस्कारस्थानासन्नफलितसहकाराणां श्रीहीरविजयसूरीश्वराणां प्रतिदिनं दिव्यवाद्यनादश्रवणदीपदर्शनादिकर्जातप्रभावा: स्तूपसहिताः पादुकाः कारिताः पं० (परिख) मेधेन भार्यालाडकीप्रमुखकुटुम्बयुतेन, प्रतिष्ठिताश्च तपागच्छाधिराजः भट्टारक श्री विजयसेनसूरिभिः उ० श्री विमलहर्षगणि उ० श्री कल्याणविजयगणि उ० श्री सोमविजयगणिभिः प्रणताः भव्यजनैः पूज्यमानाश्चिरं नदंतु (न्तु) । लिखिता प्रशस्तिः पद्मानन्दगणिना श्री उन्नतनगरे शुभं भवतु ।।
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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