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________________ यदुसुन्दर महाकाव्य : पद्मसुन्दर १.१७ हैं, कवि की कल्पना है कि सूर्य ने अपनी किरणों के झाडू से देवदम्पतियों की विलासशय्याओं से गिरे मोतियों को एकबारगी बुहार दिया है ( १२.६५ ) । श्रीहर्ष के अनुकरण पर पद्मसुन्दर ने सूर्य को बाज का रूप देकर सन्तुलन की सब सीमाओं hi दिया है । प्रभात के बहेलिये ने आकाश में सूर्य का बाज छोड़ दिया है । अपने आश्रित शश को बाज के झपट्टे से बचाने के लिये चन्द्रमा ने समुद्र की शरण है । अंधकार के वे पहले ही भाग चुके हैं । तारागण रूपी कबूतर उसके घातक पंजों से बचने के लिये नाना प्रकार की कलाबाजियाँ कर रहे हैं (१२.७४) । इन क्लिष्ट कल्पनाओं ने पद्मसुन्दर के प्रकृतिवर्णन को ऊहात्मक बना बना दिया है । चरित्रचित्रण यदुसुन्दर में वसुदेव तया कनका दो ही मुख्य पात्र हैं । वे क्रमशः नैषध के नल और दमयन्ती के प्रतिरूप हैं । मथुराधिपति समुद्रविजय का अनुज वसुदेव यदुसुन्दर का नायक है । वह विविध बहुमूल्य गुणों का भण्डार है । उसके अधिकतर गुण उसकी कुलीनता से प्रसूत हैं । उसमें गम्भीरता, उदारता तथा वाक्पटुता का समन्वय है । उसका वाक्कौशल बृहस्पति को मात करता है, गम्भीरता में समुद्र उसके सम्मुख तुच्छ है और इतिहास प्रसिद्ध कर्ण आदि भी उदारता में उसकी तुलना नहीं कर सकते ( ३.११३) । वसुदेव के सौन्दर्य से ऐसा आभास होता था मानों काम उसके रूप में पुनः जीवित हो गया हो ( पुनर्नव इवास मनोभवस्त्वम् - ३.१११) । वह अपने ऐश्वर्य तथा पराक्रम से इन्द्र की श्रेष्ठता को भी मन्द करता है ( ३.११५) । सिंहसंहनन ( ३.१०५) विशेषण उसकी शारीरिक पुष्टता तथा निर्भीकता का संकेत देता है । इन प्रशंसनीय गुणों के विपरीत उसके चरित्र का एक वह पक्ष है, जिससे यौवन के आरम्भ में, पोरांगनाओं के प्रति दुर्व्यवहार के कारण उसे अपने अग्रज के कोप का भाजन बनना पड़ता है । यह स्वयं स्वीकृत देशनिष्कासन उसकी जीवनधारा के परिवर्तन की प्रस्तावना है । अग्रज की भर्त्सना से अपमानित होकर स्वयं देश छोड़कर चला जाना उसके स्वाभिमान और दृढ़ निश्चय का द्योतक है । वैसे अपनी विनम्रता, सौहार्दपूर्ण प्रीति तथा गुणग्राहिता के कारण वह पृथ्वी का आभूषण है ( १०.६७ ) । इसीलिये कनका हंस से उसके गुण सुनने मात्र से उस पर अनुरक्त हो जाती है । वसुदेव अत्यन्त व्यवहारकुशल व्यक्ति है । कुबेर के दौत्य का आग्रह उसकी पात्रता को प्रकट करता है । उसके कारण जो आशंकाएँ उसे सालती हैं, वे उस द्वन्द्व से प्रसूत हैं, जो ऐसी स्थिति में प्रत्येक विवेकशील व्यक्ति को मथता है । परन्तु दौत्य स्वीकारने के बाद वह उसे पूर्ण निष्ठा से निभाता है । राजमहल में कनका की स्थूल • जिज्ञासाओं को बुत्ता देकर वह उसे पूरी तत्परता से कुबेर को पति रूप में स्वीकार
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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