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________________ नेमिनाथमहाकाव्य : कीतिराज उपाध्याय ८५ प्रकृति के आलम्बन पक्ष का चित्रण कीतिराज के सूक्ष्म पर्यवेक्षण का द्योतक है । वर्ण्य विषय के साथ तादात्म्य स्थापित करने के पश्चात् अंकित किये गये ये चित्र सजीवता से स्पन्दित हैं। अपने वर्णन को हृदयंगम तथा कल्पना से तरलित बनाने के लिए कवि ने विविध अलंकारों का सुरुचिपूर्ण प्रयोग किया है, परन्तु अलंकृति का यह झीना आवरण प्रकृति के सहज रूप का गोपन नहीं कर सकता। द्वितीय सर्ग के प्रभात-वर्णन के लिए यह उक्ति विशेष सार्थक है ।" हेमन्त में दिन क्रमशः छोटे होते जाते हैं और कुहासा उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है। सुपरिचित तथा सुरुचिपूर्ण उपमानों से कवि ने इस हेमन्तकालीन तथ्य का ऐसा मार्मिक निरूपण किया है कि उपमित विषय तुरन्त प्रस्फुटित हो गया है। उपययौ शनकैरिह लाघवं दिनगणो खलराग इवानिशम् । ववृधिरे च तुषारसमृद्धयोऽनुसमयं सुजनप्रणया इव ॥८.४भ पावस में दामिनी की दमक, वर्षा की अविराम फुहार तथा शीतल बयार मादक वातावरण की सृष्टि करती हैं। पवन-झकोरे खाकर मेघमाला मधुर-मन्द्र गर्जना करती हुई गगनांगन में घूमती फिरती है। कवि ने वर्षाकाल के इस सहज दृश्य को पुनः उपमा के द्वारा अंकित किया है, जिससे अभिव्यक्ति को स्पष्टता तथा सम्पन्नता मिली है। क्षरददभ्रजला कलगजिता सचपला चपलानिलनोदिता । दिवि चचाल नवाम्बुदमण्डली गजघटेव मनोभवभूपतेः ॥८.३८ कवि की इस निरीक्षण शक्ति तथा ग्रहणशीलता के कारण प्रस्तुत पद्य में शरत् के समूचे प्रमुख गुण साकार हो गये हैं। आपः प्रसेदुः कलमा विपेचुहंसाश्चुकूजुर्जहसुः कजानि । सम्भूय सानन्दमिवावतेरुः शरद्गुणाः सर्वजलाशयेषु ॥८.८२ प्रकृति के आलम्बन पक्ष का सर्वोत्तम चित्रण बारहवें सर्ग में, वन-वर्णन के अन्तर्गत, हुआ है। पक्षियों के कलरव से गुंजित तथा विविध फल-फूलों से लदी वनराजिप, गीत की मधुर तान से मोहित मृगों के अपनी प्रियाओं के साथ चौकड़ी भरने" तथा फलभार से झुके धान के खेतों की पक्षियों से रखवाली करने वाले भोले किसानों का स्वभावोक्ति द्वारा अनलंकृत वर्णन कवि के प्रकृति-प्रेम का प्रतीक है। इन १४. द्रष्टव्य : योन्दुरस्ताचलचूलिकाश्रयी बभूव यावद् गलदंशुमण्डलः । म्लानना तावदभूत्कुमुदवती कुलांगनानां चरितं ह्यदः स्फुटम् ॥ वही, २.३२ तथा २.३४,४०,४१,४३,४७. १५. वही, १२.४ २६. वही, १२.११
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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