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________________ पाइपच्चूसो 1 भील सेना सहित वहां पहुचा तब उसे सम्पूर्ण ग्राम जन-शून्य मिला । उसने अपने सैनिकों को ग्राम लूटने का आदेश दे दिया। वे घरों में गये, ताले तोड़े किन्तु किसी को कुछ नहीं मिला । आखिर खाली हाथ वे वहां से रवाना हो गये । मार्ग में सब भूख, प्यास से क्लांत हो एक स्थान पर विश्राम हेतु ठहर गये । कुछ भील फल लेने इधर-उधर गये । एक स्थान पर उन्हें सुगंधियुक्त और सुन्दर फलों की प्रचुर उपलब्धि हुई । वे उन्हें लेकर बंकचूल के पास आये और बोले— स्वामिन् ! इन फलों को आप भी खाएं और हमें भी खाने का निर्देश दें। यह सुनकर बंकचूल को अपने प्रथम नियम की स्मृति हो आई । उसने उनसे फलों का नाम पूछा । उन्होंने कहा—हम इनका नाम नहीं जानते हैं किन्तु सुगंधि से लगता है ये सब फल स्वादिष्ट हैं । बंकचूल ने कहा- मैंने आचार्य से नियम ग्रहण किया है कि जिस फल का नाम मालूम न हो उसे नहीं खाना । अत: मैं तो इन फलों को नहीं खाऊंगा और तुम्हें भी यही सलाह देता हूं कि इन्हें मत खाओ । किन्तु एक सेवक को छोड़कर किसी ने उसकी बात नहीं मानी । वे सब फल खाकर सो गये। कुछ समय बाद जब प्रस्थान करने का समय हुआ तब बंकचूल ने अपने सेवक (जिसने फल नहीं खाया था) से उन्हें उठाने को कहा । उसने आवाज दी किन्तु कोई नहीं जगा । उसने जाकर उठाने का प्रयास किया किन्तु कोई नहीं उठा । तब उसे लगा ये सब मर गये हैं। वह चूल के पास आया और बोला - स्वामिन् ! ये सब तो मृत्यु को प्राप्त हो गये हैं। कचूल को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने अनुमान लगाया कि इनकी मृत्यु का कारण ये फल ही होने चाहिए। बंकचूल जहां फल लगे थे वहां आया । एक पथिक से उन फलों का नाम पूछा। उसने कहा- ये किंपाक फल हैं। ये देखने में सुन्दर तथा सुगंधियुक्त हैं किन्तु इनको खाने से व्यक्ति मर जाता है । बंकचूल को आचार्य की स्मृति हो गई । अहो ! उन्होंने आज मेरे प्राणों की रक्षा की है - ऐसा चिन्तन कर वह उनके प्रति श्रद्धानत हो गया। वहां से प्रस्थान कर बंकचूल अपने घर आया । जब वह घर पहुंचा तब रात्रि का एक प्रहर बीत चुका था । उसके मन में विचार आज मुझे अपनी पत्नी के चरित्र का निरीक्षण करना चाहिए। उसने गुप्तरूप से देखा उसकी पत्नी एक पुरुष के साथ सो रही है । क्रोधावेश में आकर उसने पत्नी को मारने के लिए तलवार खींची। उसी समय उसे अपने दूसरे नियम की स्मृति हो आई । वह सात-आठ कदम पीछे हटा। तलवार दरवाजे से टकरा गई । उसकी आवाज सुनकर उसकी बहिन बंकचूला (जो पुरुष वेश में सोई हुई थी जग गई। भाई को आया हुआ देखकर वह उठी और स्वागत किया । बहिन आया 1 --
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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