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________________ बंकचूलचरियं अत: यहीं कहीं आसपास में किसी बस्ती में चातुर्मास योग्य स्थान की गवेषणा करनी चाहिए। ऐसा निश्चय कर वे स्थान की अन्वेषणा करते हुए बंकचूल की बस्ती में आये । बंकचूल ने उन्हें देखा और आने का कारण पूछा । आचार्य चंद्रयश ने समस्त परिस्थिति की जानकारी देते हए चार मास तक रहने योग्य स्थान की याचना की । बंकचूल ने कहा- यह चोरों की बस्ती है। यदि आप यहां रहना चाहें तो रह सकते हैं। किन्तु एक शर्त है- आप यहां किसी को चार मास तक धर्मोपदेश नहीं देंगे। क्योंकि आप जिन वस्तुओं के परिहार का उपदेश देते हैं वे ही हमारी आजीविका का साधन है। समयज्ञ आचार्य चंद्रयश ने बंकचूल का कथन स्वीकार कर लिया। बंकचूल ने उन्हें रहने के लिए स्थान दे दिया। आचार्य ने सभी शिष्यों को चातुर्मास पर्यन्त तत्रस्थ किसी व्यक्ति को उपदेश देने की मना कर दी। वे सभी स्वाध्याय, ध्यान में रत हो अपना समय व्यतीत करने लगे। शनैः शनै: पावस पूर्ण हुआ। आचार्य शिष्यों सहित विहार करने के लिए सज्जित हो बंकचूल के पास आये और कृतज्ञता प्रकट करते हुए बोले- 'बंकचूल ! अब हम प्रस्थान कर रहे हैं। तुम अपना स्थान संभाल लो।' बंकचूल आचार्य की प्रतिज्ञा-पालन से बहुत प्रभावित हुआ । वह उन्हें अपनी सीमा पर्यन्त छोड़ने आया। जब उसकी सीमा आ गई तब उसने आचार्य से निवेदन किया- अवसर आये तो हमें पन: दर्शन देना। तब आचार्य चंद्रयश ने कहा- बंकचूल ! हम तुम्हारे ग्राम में चार मास तक रहे । हमने कभी किसी को उपदेश नहीं दिया। आज यदि तुम्हारे सुनने की इच्छा हो तो कुछ सुनाएं । बंकचूल ने कहा- मेरे लिए जो शक्य हो वही कहें । आचार्य ने मानव जीवन का महत्व बताते हुए कहा- आज से तुम इन चार नियमों को ग्रहण कर लो--(१) अनजाना फल नहीं खाना (२) सात-आठ कदम पीछे हटे बिना किसी पर प्रहार न करना (३) पटरानी को माता के समान समझना (४) कौवे का मांस न खाना। बंकचूल ने इन नियमों को ग्रहण कर लिया। उसे नियमों पर दृढ़ रहने का उपदेश देकर आचार्य ने शिष्यों सहित वहां से विहार कर दिया। बंकचूल अपने स्थान पर आ गया। एक दिन बंकचूल अपनी भील सेना सहित किसी ग्राम को लूटने के लिए रवाना हुआ। ग्रामवासियों को उसके आगमन की पहले ही सूचना मिल गई । वे अपनी बहुमूल्य वस्तुएं लेकर, घरों के ताला देकर अन्यत्र चले गये। जब बंकचूल
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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