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________________ को आज तक कोई भी पुरुष अपने वश में नहीं कर सका है। कोई पुरुष उसको अपनी ओर आकृष्ट नहीं कर पाया है। पुरुष जाति पर महान् उपकार करने की दृष्टि से मैं आपसे प्रार्थना करने आया हूं।' यह सुनकर सारी सभा अवाक् रह गई। नौजवान विक्रमादित्य ने कहाचारणदेव ! मैंने आज तक इस प्रकार कोई स्त्री पुरुष द्वेषिणी होती हो, ऐसा सुना नहीं है। ऐसा क्यों हुआ तथा इसकी विशेष जानकारी प्राप्त करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए.... यदि आप कहेंगे तो अच्छा रहेगा । ' चारणकीर्ति ने कहा- 'महाराज ! मेरे पास राजकन्या का चित्र भी है और वह पुरुष - द्वेषिणी क्यों बनी, इसका विवरण भी है। यदि आप मुझे राजभवन में मिलने की आज्ञा दें तो मैं आपको विस्तार से सारी बात बता सकूंगा।' चारण देवकीर्ति की यह बात तत्काल मान ली गई और राजसभा समाप्त होने के पश्चात् महाराज विक्रमादित्य देवकीर्ति को साथ लेकर राजभवन की ओर प्रस्थित हुए । १२. प्रिया की प्रेरणा महाराज विक्रमादित्य ने चारण देवकीर्ति को भोजन करने का आग्रह किया, तब देवकीर्ति ने प्रसन्नता से कहा- 'राजन् ! मैं श्रीजिनेश्वर देव का उपासक हूं... आज मैंने अन्नजल ग्रहण करने का परित्याग किया है। आप निश्चिन्तता से भोजन करें ।' महाराज विक्रमादित्य ने देवकीर्ति को बैठक - खंड में बिठाया और स्वयं भोजन के निमित्त अपने ऊपर के खंड में गए। उस समय रानी कमलावती स्वामी की प्रतीक्षा में बैठी थी । स्वामी को आते देखकर वह उठी और हंसते हुए बोली, 'आज राजसभा में विलम्ब हो गया लगता है ।' 'हां, प्रिये ! आज यदि तुम वहां रहती तो एक आश्चर्यकारी बात सुनती ।' 'मुझे ऐसी कोई कल्पना ही नहीं थी.... अब आप क्लिम्ब न करें... वस्त्रपरिवर्तन कर भोजन-गृह में पधारें। मैं वहां तैयारी करती हूं.....फिर मुझे वह सारी बात बताएं ।' कमलावती ने कहा । मुकुट आदि को एक त्रिपदी पर रखते हुए विक्रमादित्य बोले - 'कमला ! आज तुम्हें मेरे साथ ही भोजन करना है.... फिर नीचे के कक्ष में चलेंगे। वहां वह सारी आश्चर्यकारी घटना सुनने को मिलेगी ।' कमलावती तत्काल भोजनगृह की ओर गई । लगभग दो घटिका के पश्चात् महाराजा विक्रमादित्य और महारानी कमलावती - दोनों बैठक - खंड में आ गये । वीर विक्रमादित्य ५७
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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