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________________ 'नहीं, देवी ! मेरे पास उसका प्रमाण भी है।' कहकर विक्रम ने गुप्त रूप से रखी हुई उस पेटिका से नंदनवन के पुष्पों की माला निकाली और देवदमनी की ओर फेंकते हुए कहा - 'इस पुष्पमाला को मैंने स्वप्न में देखा था और जब मैं जागा तब देखा कि वह पुष्पमाला मेरी शय्या पर पड़ी है । ' पुष्पमाला को देखकर देवदमनी क्षुब्ध हो गई। वह कुछ नहीं बोली। विक्रम ने शतरंज का खेल चालू रखा । मात्र अर्ध घटिका के भीतर देवदमनी बाजी हार गई । नागदमनी भी चौंकी। उसने सोचा, मेरी पुत्री कभी किसी से पराजित नहीं होती, आज वह फिर कैसे हार गई। कल रात्रि में देवदमनी अपनी मंत्र - विद्या से सिकोत्तर पर्वत पर गई थी और इन्द्र ने पुष्पमाला का उपहार दिया था, पर वह उपहार तो सरोवर में गिर गया था । I विक्रम ने दूसरी बाजी प्रारंभ की। देवदमनी कुछ स्वस्थ हो गई थी । शतरंज का खेल आगे बढ़ा। विक्रम बोले- ‘देवी! मेरा स्वप्न तुमने पूरा नहीं सुना। तुमने वहां दूसरा नृत्य प्रारम्भ किया। वह नृत्य बहुत अद्भुत था। मैं उसे देखता ही रहा। जब नृत्य पूरा हुआ तब बड़े देवता ने प्रसन्न होकर एक रत्नजटित नूपुर तुमको उपहारस्वरूप दिया । ' ‘महाराज! आप क्या कह रहे हैं ? स्वप्न झूठा होता है ।' 'नहीं, देवी ! यह रहा वह नूपुर ।' कहकर विक्रम ने पेटिका से नूपुर निकाला और देवदमनी की गोद में डाल दिया। मैंने इसी नूपुर को स्वप्न में देखा था, पर पता नहीं कैसे यह भी शय्या पर पड़ा हुआ मिला । ' देवदमनी अत्यन्त क्षुब्ध हो गई । वह दूसरी बाजी भी हार गई। विक्रम बोले- 'देवदमनी ! मैंने दो बाजियां लगातार जीत ली हैं। यदि मैं इस तीसरी बाजी को भी जीत लेता हूं तो तुम्हें मेरे साथ विवाह करना होगा और पंचदंड वाले छत्र की बात बतानी होगी ।' देवदमनी ने कहा- 'महाराज ! अभी आपने मुझे दो बार ही जीता है। तीसरी बार आप कभी नहीं जीत सकते।' विक्रम ने कहा- 'देवदमनी ! मैं तो प्रारम्भ से ही कहता रहा हूं कि मैं हारने के आनन्द के लिए ही खेल रहा हूं। तुम्हारे जैसी निष्णात के समक्ष हारना भी जीवन का अपूर्व आनन्द है, किन्तु प्रतीत होता है कि आज तुम्हारा चित्त कुछ अस्वस्थ है । तुम्हारी इच्छा हो तो आज तीसरी बाजी न खेलकर इसे कल के लिए स्थगित कर दें ।' वीर विक्रमादित्य २३१
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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