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________________ 294 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन 18/37 || - हे आर्य ! सदा सांसारिक कार्यों में ही मत लगे रहो. कुछ समय बचाकर धर्मकार्य में लगाओ, धर्म करो। मनुष्यता को प्राप्त करो, उसकी कीमत करो। जाति कुल का मद मत करो। सदा अर्थ अर्थात धन या स्वार्थ के दास मत बने रहो, किन्तु लोकोपकारी यश के भी कुछ काम करो। अन्य मनुष्यों पर ईर्ष्या द्वेष आदि करके पाप से अपने आप को लिप्त मत करो। 3. शपन्ति क्षुद्रजन्मानो व्यर्थमेव विरोधकान्। सत्याग्रह-प्रभावेण महात्मा त्वनुकूलयेत् ।। 10/34 ||क्षुद्रजन्मा दीन पुरूष विरोधियों को व्यर्थ कोसते हैं। महापुरूष तो सत्याग्रह के प्रभाव से विरोधियों को भी अपने अनुकूल कर लेते हैं। यहां पर महात्मा पद से गांधी जी और उनके सत्याग्रह आन्दोलन की यर्थाथता की ओर महाकवि ने संकेत किया है। 4. बलीयसी संगतिरेव जातेः ।। 21/4|| - जाति की अपेक्षा संगति ही बलवती होती है। 5. मनस्वी मनसि स्वीये न सहायमपेक्षते ।। 10/37|| - मनस्वी __पुरूष अपने चित्त में दूसरों की सहायता की अपेक्षा नहीं रखते हैं। सन्दर्भ - 1. जैन धर्म, पं. कैलाशचन्द सिद्धान्त शास्त्री पृ. 84 | 2. जैन धर्म, पं. कैलाशचन्द सिद्धान्त शास्त्री पृ. 85 । 3. Sanskrit English Dictionary (M. Williams) 4. जैन दर्शन, पृ. 9-101 5. उत्तराध्ययन, अ. 12, गा. 46, 47 | 6. महाकवि ज्ञानसागर के काव्य एक अध्ययन पृ. 421 | 7. वीरोदय श्लोक 33-39 सर्ग. 18 | 8. भारतीय संस्कृति पृ. 901
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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