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________________ 247 वीरोदय महाकाव्य का सांस्कृतिक एवं सामाजिक विवेचन प्रकार से प्रसन्न रखा जाता है। इस महाकाव्य में भी तीर्थकर का गर्भावतरण होने पर इन्द्रदेव श्री ह्रीं आदि देवियों को माता प्रियकारिणी की सेवा-सुश्रूषा के लिए भेजते हैं, जो माता की सेवा के लिए सदा तत्पर रहती भारतीय संस्कृति में सोलह संस्कारों की भी विशेष मान्यता है। इस ग्रन्थ में उचित समय पर वीर प्रभु का गर्भावतरण, उनका जन्म, नामकरण, शिक्षा-दीक्षा आदि संस्कारों का उल्लेख हुआ है।' __. पुर्नजन्म की अवधारणा के फलस्वरूप व्यक्ति को अपने किये हुए कर्मों का फल दूसरे जन्म में अवश्य भोगना पडता है। वर्धमान के तैंतीस पूर्वजन्मों का वर्णन इस मान्यता की पुष्टि करता है। भारतीय संस्कृति में त्यौहारों का महत्त्व होने से महाकवि ज्ञानसागर ने भी श्रावण मास में झूला झूलने की परम्परा का उल्लेख किया है। गतागतै-र्दोलिककेलिकायां मुहुर्मुहुः प्राप्तपरिश्रमायाम् । पुनश्च नैषुण्यमुपैति तेषु योषा सुतोषा पुरूषायितेषु ।। 21 || -वीरो.सर्ग.41 भारतीय संस्कृति में निहित, पुरूषार्थ चतुष्टय तथा चतुर्वर्ण ही समाज-व्यवस्था को व्यवस्थित रखते हैं। वीरोदय में पुरूषार्थ चतुष्ट्य तथा चतुर्वर्ण का संकेत है। महाराज सिद्धार्थ अपनी प्रजा में पुरूषार्थ चतुष्ट्य व चतुर्वर्ण की व्यवस्था स्वयं किया करते थे। त्रिवर्गभावात्प्रतिपत्तिसारः स्वयं चतुर्वर्णविधिं चकार। जनोऽपवर्गस्थितये भवेऽदः स नाऽनभिज्ञत्वममुष्य वेद ।। 9 ।। -वीरो.सर्ग.3।
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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