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________________ वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन लाकर इन्द्र को सौंप दिया। भगवान को देखकर इन्द्र ने उन्हें प्रणाम किया और ऐरावत हाथी पर बैठाकर जैन- मन्दिरों से युक्त सुमेरू पर्वत पर गया। वहाँ देवगणों ने क्षीर सागर के जल से भगवान का अभिषेक किया । अभिषेक के बाद इन्द्राणी ने भगवान के शरीर को पोंछकर सुन्दर आभूषणों से सजाया। इसप्रकार भगवान का जन्म - महोत्सव मनाकर देवगण कुण्डनपुर लौटे। शिशु को माता की गोद में सुलाकर नाचते गाते सभी अपने-अपने निवास स्थान को चले गए। राजा सिद्धार्थ द्वारा पुत्र जन्मोत्सव राजा सिद्धार्थ ने भी अपने पुत्र का जन्म - महोत्सव बड़ी धूम-धाम से सम्पन्न किया । पुत्र के शरीर की बढ़ती हुई कान्ति को दृष्टि में रखकर राजा ने उसका नाम श्री वर्धमान रखा। बालक वर्धमान अपनी सुन्दर - सुन्दर बालोचित चेष्टाओं से जन-समुदाय को हर्षित करने लगा । भगवान महावीर द्वारा विवाह प्रस्ताव का बहिष्कार 96 - い धीरे-धीरे बालक युवावस्था की ओर अग्रसर हुआ । पुत्र को युवावस्था में देखकर पिता सिद्धार्थ ने उनके लिये विवाह-योग्य कन्या देखने का निश्चय किया, किन्तु वर्धमान ने पिता के इस प्रस्ताव का अनुमोदन नहीं किया। पिता के बार-बार आग्रह करने पर वर्धमान ने नम्रता - पूर्वक उन्हें समझाया और उनसे ब्रह्मचर्यव्रत की अपनी बलबवती इच्छा प्रकट की । पुत्र की ब्रह्मचर्यव्रत के प्रति ऐसी निष्ठा देखकर पिता ने हर्षित होकर उनके शिर का स्पर्श करके यथेच्छ जीवनयापन करने की अनुमति दे दी। विवाह - प्रस्ताव को ठुकराने के पश्चात् वर्धमान का ध्यान संसार की शोचनीय दशा की ओर गया। हिंसा, स्वार्थलिप्सा, अधर्म, व्यभिचार, दुर्जनता इत्यादि बुराईयों से लिप्त संसार की रक्षा करने का उन्होंने निश्चय किया । आज का यह मानव स्वयं खीर खाने की इच्छा करते हुए भी दूसरों को चना खाने के लिये उद्यत देखकर उदर - पीड़ा से पीड़ित हुआ दिखाई दे रहा है। दुःख है कि आज धरातल पर यह नाममात्र से - मनुष्य बना हुआ है । देवतास्थली (मन्दिरों की पावन भूमि ) पशुओं की बलि
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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