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________________ अध्यात्म रस का शब्दशास्त्र : 'मूकमाटी' डॉ. (श्रीमती) अलका प्रचण्डिया 'दीति' वन्दनीय आचार्य श्री विद्यासागरजी के अन्तस् का विस्फोट 'मूकमाटी' साहित्य और दर्शन के मूलभूत सिद्धान्तों का अभिनव आकलन है। आचार्यश्री का जीवन दर्शन उनकी साधना यात्रा का नवनीत है। यह नवनीत उनकी अनुभूति का सार-परिणाम है जो चिन्तन के निकष पर खरा उतरता है। उनका मानना है : "तन और मन को/तप की आग में/तपा-तपा कर जला-जला कर/राख करना होगा/यतना घोर करना होगा तभी कहीं चेतन-आत्मा/खरा उतरेगा ।/खरा शब्द भी स्वयं विलोमरूप से कह रहा है-/राख बने बिना खरा-दर्शन कहाँ ?/रा"ख"ख"रा"।" (पृ. ५७) आकार में बृहत् और चार खण्डों में विभक्त 'मूकमाटी' शब्द साधना का जीवन्त दस्तावेज़ है । नारी, सुता, दुहिता, कुमारी, स्त्री, अबला आदि के आन्तरिक अर्थ आचार्यश्री की महिलाओं के प्रति आदर-आस्था का परिचायक है। इतना ही नहीं, नारी के शान्त, संयत रूप की शालीनता को भी आचार्यश्री ने सराहा है । पुरुष की पूर्णता और सार्थकता का आधेय नारी है। यही नारी पुरुष के पाप को पुण्य में परिणत करती है। उसकी वासना को उपासना का दर्जा दिलाती है । कविश्री का मानना है कि पुरुष का काम पुरुषार्थ' निर्दोष हो, इसलिए नारी गर्भधारण करती है : "धर्म, अर्थ और काम-पुरुषार्थों से/गृहस्थ जीवन शोभा पाता है। इन पुरुषार्थों के समय/प्राय: पुरुष ही/पाप का पात्र होता है, वह पाप, पुण्य में परिवर्तित हो/इसी हेतु स्त्रियाँ प्रयत्ल-शीला रहती हैं सदा ।/पुरुष की वासना संयत हो,/और पुरुष की उपासना संगत हो,/यानी काम पुरुषार्थ निर्दोष हो, बस, इसी प्रयोजनवश/वह गर्भ धारण करती है।" (पृ. २०४) इतना ही नहीं, नारी संग्रहवृत्ति और अपव्यय रोग से पुरुष को बचाती है तथा दान-पूजा आदि से धर्म परम्परा की संरक्षा करती है : "संग्रह-वृत्ति और अपव्यय-रोग से/पुरुष को बचाती है सदा, अर्जित-अर्थ का समुचित वितरण करके ।/दान-पूजा-सेवा आदिक सत्कर्मों को, गृहस्थ धर्मों को/सहयोग दे, पुरुष से करा कर धर्म-परम्परा की रक्षा करती है।" (पृ. २०४-२०५) आचार्यश्री ने माटी को अपने काव्य का वर्ण्य विषय बनाकर अपनी मौलिक उद्भावना का परिचय दिया है। 'माटी' से 'मंगल घट' तक की यात्रा में कुम्भकार को क्या कुछ करना होता है, उस प्रक्रिया को कविश्री ने प्रतीक शैली में चित्रित किया है। 'मूकमाटी' से हम सन्त कवि के साहित्य बोध से भी परिचित होते हैं, जब वे नव रसों को परिभाषित करते हैं तथा शृंगार और प्रकृति की व्याख्या काव्यात्मक शैली में प्रस्तुत करते हैं । इस वर्ण्य विषय के
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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