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________________ 428 :: मूकमाटी-मीमांसा विशेष अन्तर साक्ष्य नहीं होता है। इसमें लेखक के स्वाध्याय, चिन्तन-मनन एवं तपश्चरण के व्यापक प्रभाव दृग्गत होते हैं । अतुकान्त बोध इस कृति की विशिष्टता है किन्तु आलंकारिक तथा सामासिक दृष्टि से कृति धनी है । प्रस्तुत महाकाव्य में जैन धर्म तथा जैन संस्कृति का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है । भाषा महाकाव्यानुकूल तथा सर्वग्राह्य है। समीक्ष्य कृति भारतीय तत्त्व मनीषा की विशद व्याख्या है । सांस्कृतिक मूल्याधारित होने से यह भारतीय जीवनधारणा को बलवती तथा फलवती बनाती है । कृति उद्देश्य को पूर्ण करती है । प्रस्तुत कृति रोचक, ज्ञानवर्धक, संग्रहणीय तथा मानव के नेत्र कपाट खोलनेवाली है । आशा है, हिन्दी काव्य संसार में इस अभिनव कृति का पर्याप्त आदर तथा स्वागत होगा। सन्त काव्य परम्परा को नई सन्ध्या भाषा में बढ़ाने वाली : 'मूकमाटी' डॉ. विद्या विन्दु सिंह मैंने आचार्य श्री विद्यासागरजी की 'मूकमाटी' पढ़ी। 'मूकमाटी' महाकाव्य एक आश्चर्य है। आधुनिक हिन्दी में इतना बड़ा महाकाव्य लिखने की बात भी नहीं सोची जा रही है । पर साधना के बल पर अध्यात्म को और विचार दर्शन को केन्द्र में रखकर नए-नए बिम्बों और प्रतीकों के सहारे इतना विशाल काव्य लिखा गया है। मैं इसके लिए लेखक को बधाई देती हूँ। ___इसको समझने और पढ़ने के लिए भी सन्त की भावभूमि अपेक्षित है। इसीलिए इस काव्य की समीक्षा करने का मैं अपने को अधिकारी नहीं मानती। इतना ही कह सकती हूँ कि सन्त काव्य परम्परा को नई सन्ध्या भाषा में आगे बढ़ाने का यह कार्य समादर पाएगा। जिसे सन्त कवि ने मूकमाटी कहा, वह इस काव्य के बाद बड़ी ही वाचाल माटी हो गई है। माटी के माध्यम से पार्थिव जीवन अर्थ पा गया है। इस अनूठी कृति के प्रकाशन के लिए भारतीय ज्ञानपीठ को हार्दिक बधाई। मेरी हार्दिक मंगलकामना है कि यह ग्रन्थ हिन्दी काव्य साहित्य में अपनी अनूठी पहचान बना सके। पृ.६६ -----. उसको पर क्या हुआ? मानस-स्थिति भी उर्ध्वमुखी होगई,
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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