SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 191 वहाँ आकर देखो मुझे,/तुम्हें होगी मेरी/सही-सही पहचान क्योंकि/ऊपर से नीचे देखने से/चक्कर आता है और/नीचे से ऊपर का अनुमान लगभग गलत निकलता है।" (पृ. ४८७-४८८) ___ वे प्रवचन करते हैं कि जीवन में विश्वास, आस्था उत्पन्न करो, तभी अनुभूति होगी और तभी गन्तव्य मिलेगा, अवश्य मिलेगा। और फिर : "महा-मौन में/डूबते हुए सन्त"/और माहौल को अनिमेष निहारती-सी/"मूकमाटी।" (पृ. ४८८) आचार्य कवि ने इस प्रकार साधना और उसके लिए आवश्यक भाव-तत्त्व तथा बीच के पड़ाव की बाधाओं, उनको दूर कर, सही पाथेय प्राप्त करने के साधन आदि का चित्रण भी किया है । विशेष बात यह है कि अवसर पाते ही वे देश की संस्कृति, राजनीति, सामाजिक स्थितियों पर भी कटाक्ष करते हैं क्योंकि कवि अन्तत: जहाँ रहता है, उसकी विशिष्टताओं से अछूता नहीं रह सकता : "सत्य का आत्म-समर्पण/और वह भी/असत्य के सामने ? हे भगवन् /यह कैसा काल आ गया।" (पृ. ४६९) इसी प्रकार : “प्राय: अपराधी-जन बच जाते/निरपराध ही पिट जाते, और उन्हें/पीटते-पीटते टूटती हम ।/इसे हम गणतन्त्र कैसे कहें ? यह तो शुद्ध 'धनतन्त्र' है/या/मनमाना 'तन्त्र' है !" (पृ. २७१) इसी प्रकार साहित्य भी वही है जो सबके हित से युक्त है। अपनी बात कहने के लिए आचार्य कवि ने अलंकारों, प्रतीकों का खुलकर प्रयोग किया है। शब्दों के नवीन अर्थ गढ़, उनकी मीमांसा भी की है। उपदेश के लिए वे मच्छर तक का उपयोग करने से भी नहीं सकुचाते। __ पूरी कृति का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि मूलत: वे कुम्भ, कुम्भकार के माध्यम से दर्शन संकेत देना चाहते हैं। यह कृति सांसारिक व्यक्ति को भोग से योग की ओर मुड़कर, श्रमण-संस्कृति की ओर बढ़कर आत्मसमर्पण का दिशा संकेत प्रदान करती है। पृष्ठ२३६-२३७ लो, विचारों में समानता - ---आकुलता करनी बदी है। / - 5
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy