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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 133 करता है और 'स' सहज सुख का साधन है तो 'ष' पाप-पुण्य से मुक्त होने का प्रतीक है। इसी सन्दर्भ में कवि 'भू' शब्द से धरती के अनेक गुण, रूप का वर्णन भी कर देता है । कुशल चिकित्सक दवा और उपदेश द्वारा तन-मन दोनों का उपचार करता है । प्राकृतिक चिकित्सा में विश्वास व्यक्त करता है। वह माटी के उपचारों को विस्तारपूर्वक प्रस्तुत करता है । कवि इसी सन्दर्भ में वाणी की महत्ता प्रतिपादित करता है । उसके स्वरूपों को प्रस्तुत करते हुए एक भाषावैज्ञानिक की भाँति उसके उच्चारण, स्थानों, प्रभाव आदि का वर्णन कर 'बैखरी वाणी' पर विशेष विचार प्रस्तुत करता है । 'बैखरी' की व्याख्या भी अपने ढंग से करते हुए उसे प्रमाद या अज्ञान से मुक्ति दिलाने वाली मानता है । मुनि ध्यान की चर्चा करते समय उसके उपयुक्त समय स्थान का निर्देश करता है। अयोग्य समय में यदि ध्यान क्रिया की जाए तो उलटे नुकसान करती है : "योग के काल में भोग का होना / रोग का कारण है, / और भोग के काल में रोग का होना / शोक का कारण है । " (पृ. ४०७ ) कवि दवा के सेवन में भी निर्दोष आयुर्वेदिक दवाओं के प्रयोग की हिमायत करता है । विदेशी हिंसात्मक, बहुमूल्य दवाएँ खाने का रोग भी अमीरों को ही होता है। मुनि की दृष्टि का पैनापन देखिए-- वह हमारे रसोई घर के बर्तनों से कितना परिचित है। अरे ! आज के लोग सोने, चाँदी, ताँबे एवं पीतल के शुद्ध बर्तनों के स्थान पर लोहे के यानी 'स्टील' के बर्तनों के पीछे पागल हो रहे हैं। अरे ! जेल में भी लोहे की हथकड़ियाँ पहनाई जाती हैं तो क्या हम इन बर्तनों के उपयोग द्वारा कहीं अपने स्वास्थ्य को जेल में तो नहीं डाल रहे ! यह कैसा युग ! सोना गया तो लोहा ही रह गया । वर्तमान में जीभ की लोलुपता और खाद्यान्न में मिलावट कितनी खतरनाक है, इस ओर भी वे इंगित कर रहे हैं। ऐसा भोजन ही आज दाह रोग, रक्तचाप, हृदय रोग आदि का कारण बन रहा है । कवि को चिन्ता है समाज के स्वास्थ्य की । कवि धन के अतिव्यय का पक्षपाती नहीं । उसे मितव्यय में आस्था है । स्वर्ण आदि घटों के इतने आक्रोशात्मक कटुवचन के बाद भी मिट्टी के कुम्भ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । वह तो क्षमा गुण से मुस्कराता है। सेठ भी उसी को स्वीकार करते हैं। इससे क्रोधाग्नि, ईर्ष्याग्नि से पीड़ित हो सभी हिंसा और आतंकवाद पर उतर आते हैं । "यह बात निश्चित है कि/मान को टीस पहुँचने से ही, आतंकवाद का अवतार होता है ।" (पृ. ४१८) यह आतंकवाद 'पर' एवं 'स्व' सबके लिए घातक ही होता है । कवि आतंकवाद के उद्भव, कार्य और परिणामों की भयानकता का चित्र प्रस्तुत कर मानों वर्तमान आतंकवाद के विषय में अपने भाव प्रस्तुत करता है। उसका भाव है कि ये आतंकवाद समाप्त हो, क्योंकि यह सबके लिए दुखद है। आतंकवाद कभी व्यक्ति की पहिचान नहीं करता । वह दोस्त - दुश्मन के भेद को भूल जाता है । अत: एक परिवार के कारण अन्य दुःखी ना हों, इस भाव से कुम्भ सेठ को सपरिवार निकल भागने की सलाह देता है। सेठ स्वीकार करता है । इस खण्ड की यह उपकथा बड़ी ही रोचक, रोमांचक है। कथा तथ्य की दृष्टि से भी यह महत्त्वपूर्ण है । भाग हुए परिवार को जंगल में सिंह प्रेम से, अहिंसा से अभय-दान देकर स्वागत करता है । यह धर्म का ही प्रभाव कहा जाएगा। आतंकवाद जोर-शोर से पीछा कर रहा है। कवि ने आतंकवाद के रौद्र स्वरूप का यथातथ्य चित्रण किया है, मानों रौद्र रस ही रूप धारणकर अवतरित हुआ हो। कुछ पंक्तियाँ देखिए :
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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