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________________ ३५८ लघुसिद्धान्तकौमुद्याम अथ विसर्गसन्धिः भाषार्थः प्रयोगाः सू० १०३ विष्णुस्त्राता -श्रीविष्णु, भगवान् रक्षक हैं ( एवं विवृतौ ) छात्र स्तिष्ठति - विद्यार्थी ठहरता है । गौश्चत - गौ चरती है । कृष्णश्छिनत्ति - भगवान् श्रीकृष्ण (जन्मबन्ध) काट देते हैं । सू० १०४ हरिश्शेते - भगवान् श्रीहरि सो रहे हैं । ( एवं विवृतौ ) छात्रा सन्ति - विद्यार्थी ( उपस्थित) हैं राष्ट-छः रस हैं । सू० १०६ शिवोऽर्थः - भगवान् शिव पूजनीय हैं। ( एवं विवृतौ) शुद्धोऽहम् - मैं शुद्ध स्वरूप हूँ । बुद्धोऽस्मि - मैं बुद्ध स्वरूप हूँ । छात्रोऽयम् - यह विद्यार्थी I सू० १०७ शिवो वन्द्य-भगवान् शिव वन्दनार्थ हैं । ( एवं विवृतौ ) रामो वदति - भगवान् श्रीराम कहते हैं । छात्र गच्छति - विद्यार्थी जाता है। कृष्णो जयति - भगवान् श्री कृष्णचन्द्र की जय ! काको डीयते - कोश्रा उड़ता है । कर्णो ददाति -- राजा कर्ण दान देते हैं। प्रयोगाः भाषार्थः 1 व्यासो ब्रूते - भगवान् वेदव्यास कथा कहते हैं । सू० १०८ देवा इह--देवता यहाँ (श्रावें) । ( एवं विवृतौ ) छात्रा आगच्छन्ति-विद्यार्थी श्राते हैं । वीरा उत्सहन्ते - - वीर पुरुष उत्साह करते हैं। देवा एते- ये देवता हैं । धार्मिका वर्धन्ते - धार्मिक लोग बढ़ रहे हैं। भक्ता भजन्ति--भक्त (भगवान्) को भजते हैं । हया हेषन्ति - घोड़े हिनहिनाते हैं । - याशिका यान्ति-- याज्ञिक लोग जाते हैं । बाला रमन्ते--: -- बालक खेलते हैं । विप्रा दयते ब्राह्मण दया करते हैं। सु. १०६ • भो देवा:- ह देवताओं ! भगो नमस्ते - हे भगवान्! आपके प्रति नमस्कार है। धो याहि श्ररे ( पापी ! ) दूर हट । सू० ११० अहरहः--प्रतिदिन | अहर्गणः--दिनसमूह अर्थात् संवसर । ( एव विवृतौ श्रर्भाति-दिन सुहाता है । | प्रातरत्र - प्रातः काल यहाँ (जाना) [ भ्रातर्देहि---भ्राता जी (यह मुझे) दो ।
SR No.006148
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishvanath Shastri, Nigamanand Shastri, Lakshminarayan Shastri
PublisherMotilal Banrassidas Pvt Ltd
Publication Year1981
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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