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________________ -60 “सांच को आंच नहीं” (0902 "मूर्तिपूजकों के धर्म की विचारणा” की समीक्षा इसमें मूर्तिपूजा की अर्वाचीनता सिद्ध करने के लिए लेखक ने एक कुतर्क दिया है । “माता-पिता जीवित हो, परस्पर बहुत प्रेम हो तो भी पुत्र पिता की मूर्ति बनाकर पूजा नहीं करता है।” लेखक श्री को समझना चाहिये कि सामान्य से व्यवहार में विशिष्ट पुरुषों की मूर्तियों की ही प्रचलना है, वह भी बहुलतया मरणोत्तर अवस्था में उनके चिरस्मरण के लिये । बाकी फोटो भी मूर्ति का ही प्रतिरूप है, वह तो उनकी विद्यमानता में भी होते ही है । उस फोटो को मातापितादि के अचिरकालीन अथवा चिरकालीन अनुपस्थिति में दर्शन-पूजन के लिये उपयोगी मानते ही है । मूर्तिविरोधियों के भी फोटो तो अनेक जगह पर दिखते ही है। इसलिए उपर के कुतर्क से जो यह सिद्ध करना चाहा है कि "भगवान की उपस्थिति में तो उनका मंदिर और पूजा नहीं थी, अमूर्तिपूजक धर्म ही था ।” वह सिद्ध नहीं हो सकता हैं । भगवान के समवसरण में भी भगवान खुद पूर्वाभिमुख ही होते है, अन्य ३ दिशा में उनकी प्रतिकृति ही होती है । 'मूर्तिपूजा का प्राचीन इतिहास' के पृ. ११७ से पृ. १९३ तक में मूर्तिपूजा की अतिप्राचीनता के अनेकानेक उदाहरण दिये है, जिज्ञासु वहाँ से देख सकते है । कुछ इस प्रकार है :__१. प्रभास पाटण (गुजरात) में सोमपुरा-ब्राह्मण के पास से ताम्रपत्र मिला, जो दुर्गम्य भाषा में लिखा हुआ था । खुब महेनत से प्रखर भाषा शास्त्री प्राणनाथजी ने उस लेख को स्पष्ट समझा । उस लेन में नेबुचंद्र नेझरने विक्रम पूर्व ६०० यानि भगवान महावीर के जन्म से पूर्व गिरनार में नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा व मंदिर बनवाया ऐसा उल्लेख है ( जैनपत्र ता. ३-१-१९३७) २. मोहनजोदारा खोदकाम में ध्यान मुद्रावाली प्रतिमाएँ निकली, जिन्हें पुरातत्त्व विभाग ने संशोधन करके ५००० वर्ष पूर्व की बताई है। . ३. बारसी ताकली - आकोला जिले में खोदकाम में २६ प्रतिमाएं मिली, जिन्हें पुरातत्त्वविदों ने ई.पू.६००-७०० वर्ष की निश्चित की है । (सन् १९३६ समाचार पत्र) 16
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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