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________________ 66 फिर पृ. 648 पर बांठिया जी लिखते हैं : . शेष आगमों का प्रकाशन हेतु श्रद्धासम्पन्न योग्य पण्डित रखकर उनका प्रकाशन किया जाय तो शासन सेवा का महत्वपूर्ण कार्य होगा ।" ...... समीक्षा : पूर्व में बांठिया जी ग्रन्थ- प्रकाशन के कार्य को सावध - हिंसामय कहकर अधर्म बताते हैं, फिर वही अधर्म के लिए 40 प्रतिशत रकम दानवीरों के पास माँगते हैं। अरे भाई ! ग्रन्थ- प्रकाशन का कार्य सावधहिंसायुक्त है, जिसमें 10 हजार की विद्युत जली है, तो फिर कितने ही त्रस तथा स्थावर जीवों की हिंसा हुई होगी? फिर ऐसे सावध पाप कार्य के लिए कौन दानवीर धर्मात्मा रकम देगा ? गांठ के पैसे खर्च कर कौन धर्मात्मा पाप को मोल लेगा? बांठियाजी ! आप भी वकालत ठीक पढ़े हैं। फिर आगे आगम प्रकाशन के कार्य को सम्पादक श्री ने 'शासन प्रभावना का महत्वपूर्ण कार्य बताया है', यह कैसे? क्या हिंसा का कार्य शासन प्रभावना का महत्वपूर्ण काम हो सकता है? एक ओर तो बांठिया जी लिखते हैं, 'हिंसा में तो तीन काल में धर्म नहीं होता ।' फिर लिखते हैं कि 'भगवान ने ग्रन्थ प्रकाशन के कार्य को सावद्य पापमय बताया है ।' बाद में लिखते हैं कि 'ग्रन्थ प्रकाशन का कार्य शासन प्रभावना का महत्वपूर्ण काम है।' हैं न बेमेल बातें ! सच ही तो कहा है कि 'विवेक से भ्रष्ट असत्यवादी व्यक्ति का पतन एक बार नहीं सौ बार होता है । ' पाप कार्य उपादेय नहीं है जीत की भेरी (पृ. 4-5, दि. 16 - 11 - 95 ) में श्री मनोहरलाल जी जैन (धार, मध्यप्रदेश वाले) लिखते हैं कि 66 ........ समर्पण (14)
SR No.006133
Book TitleKya Dharm Me Himsa Doshavah Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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