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________________ स्थानकवासीसंत आदिहिंसाका विरोध करते हैं, फिर भीवेगायकोघास डालना, कबूतरकोचुग्गाडालना, संघ भोजन करवाना, पुस्तक छपवाना, स्थानक बँधवाना, गुरु-मन्दिरकरवाना, चदर महोत्सवरचवाना इत्यादि आरंभ-समारंभयुक्त हिंसक प्रवृत्तियों करते ही हैं। और भी वे अहिंसा धर्म की दुहाई करते रहते हैं। शास्त्र छपवाना धर्म है या अधर्म? शास्त्र छपाई में भी त्रस एवं स्थावरकाय जीवों की हिंसा होती ही है। नेमिचन्दजी बांठिया लिखते हैं कि "....... भगवान ने तो ग्रन्थ प्रकाशन के कार्य को सावध बताया है और साधक को इसमें प्रवृत्त न होने का उपदेश दिया है। ......." (सम्यग्दर्शन, पृ. 623, दि. 5-11-95) समीक्षा : सबसे प्रथम तो बांठिया जी को 'सम्यग्दर्शन' पत्रिका छापनाहीबन्द कर देना चाहिए और आचार्य श्रीघासीलालजीम.आचार्य श्रीचौथमलजी म., आ. श्री हस्तीमलजी म., आ. श्री मधुकरजी म. इत्यादि सभी ने ग्रन्थ प्रकाशन करवाकर सावद्यपापकारीकार्य किया है, उनकाबहिष्कार तथा विरोध करनाचाहिए तथा उनके ग्रन्थ-प्रकाशन के कार्य की निन्दा करनीचाहिए। पर, बांठिया जी लिखते हैं कुछ और करते हैं कुछ औरछठे अधिवेशन के प्रस्ताव में बांठियाजीने प्रस्ताव रखा था कि "........... एक पुस्तक के प्रकाशन में 40% रकम दानवीर दाताओं के पास से मांगी जाये।" ...... (पृ. 648, दि. 5-10-95) आय-व्यय के हिसाब में पृ. 649 पर लिखा है कि "....... प्रेस खर्च 60 हजार, विद्युत खर्च 10 हजार ......।" (13)
SR No.006133
Book TitleKya Dharm Me Himsa Doshavah Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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