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________________ वंदित्तु सूत्र प्रवृत्ति करने का अत्यंत दर्द हो, तो उसकी ऐसी प्रवृत्ति अनुबंध हिंसा रूप नहीं बनती। जबकि शास्त्र के प्रति अनादरवाला या नि:संकोच आज्ञानिरपेक्ष उपदेश देने वाला या प्रवृत्ति करने वाला इस अनुबंध हिंसा से बच नहीं सकता। जहाँ तक बुद्धि तीव्र मिथ्यात्व से ग्रस्त हो वहाँ तक प्रभु आज्ञा के प्रति आदर कभी भी प्रकट नहीं हो सकता एवं प्रभु आज्ञा के प्रति आदर बिना ऐसी हिंसा से बच नहीं सकते। ___ अनुबंध हिंसा करने वाला व्यक्ति अनेक भवों की परंपरा तक हिंसा के कटु फल भुगतता हैं। इसलिए ही उस हिंसा को अनुबंध हिंसा कहा है। सिर्फ स्वरूप हिंसा से विशेष कर्मबन्ध नहीं होता परंतु हेतु हिंसा से निश्चित रूप से विशेष कर्मबन्ध होता है एवं हेतु हिंसा से भी अनुबंध हिंसा बहुत ही कटु फल देनेवाली बनती हैं। अतः अनुबंध हिंसा से बचने का खास खयाल रखना चाहिए एवं उसके लिए प्रत्येक प्रवृत्ति करते वक्त प्रभु आज्ञा का विचार अवश्य करना चाहिए। स्वरूप हिंसा । हेतु हिंसा अनुबंध हिंसा १. बाहरी दृष्टि से हिंसा १. बाह्य हिंसा हो या न १. बाह्य हिंसा हो या न भी दिखाई देती है। भी हो। २. जीवों को मारने की २. जीवों को पीड़ा देने की २. अनंत काल तक जीवों को भावना कभी नहीं होती। स्पष्ट भावना न होने पर पीड़ा उत्पन्न करने में निमित्त भी हिंसा में निमित्त बने बन जाए ऐसी जिनाज्ञा की वैसे मद्य, विषय-कषाय उपेक्षा यहाँ अवश्य होती हैं। आदि प्रमाद अवश्य होते हो। हैं। ३. जीवों को बचाने का ३. अन्य के सुख की उपेक्षा ३. अन्य जीवों के आत्महित याने कि जयणा का और स्व सुख की तमन्ना की उपेक्षा। परिणाम ज्वलंत होता है। तीव्र होती हैं। ४. भगवद् आज्ञा की|४. भगवद् आज्ञा पालन ४. विवेक का पूर्ण अभाव , सापेक्षता याने सम्यग् की उपेक्षा हो या न भी हो मिथ्यात्व का उदय, भगवद् दर्शन आदि की स्वीकृति। पर विवेक का अभाव। आज्ञा की पूर्णतया उपेक्षा। ५. हिंसाजन्य अति अल्प ५. पापकर्मों का बन्ध और ५. हिंसा के कटु फल प्राप्त कर्मबन्ध, भववृद्धि आदि आज्ञा सापेक्षता हो तो होते हैं क्योंकि जिनाज्ञा की फल का अभाव। अल्प कर्मबन्ध। उपेक्षा ही भववृद्धि का कारण बनती हैं।
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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