SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूल सूत्र जावंति चेइआई, उड्डे अ अहे अतिरिअलोए अ । सव्वाइं ताइं वंदे, इह संतो तत्थ संताई ।।४४।। जावंत के वि साहू, भरहेरवय-महाविदेहे अ, सव्वेसिं तेसिं पणओ, तिविहेण तिदंड-विरयाणं ।।४५।। चिर-संचिअ-पाव-पणासणीइ, भव-सय-सहस्स-महणीए । चउवीस-जिण-विणिग्गय-कहाइ, वोलंतु मे दिअहा ।।४६।। मम मंगलमरिहंता, सिद्धा साहू सुअं च धम्मो अ । सम्मद्दिट्ठी देवा, दितु समाहिं च बोहिं च ।।४७।। पडिसिद्धाणं करणे, किञ्चाणमकरणे अ पडिक्कमणं । असद्दहणे अ तहा, विवरीअ-परूवणाए अ ।।४८।। खामेमि सव्वजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे । मित्ती मे सव्वभूएसु, वेरं मज्झ न केणइ ।।४९।। एवमहं आलोइअ, निंदिअ गरहिअ दुगंछिअं (उ) सम्मं । तिविहेण पडिकंतो, वंदामि जिणे चउव्वीसं ।।५० ।। सूचना - यह सूत्र लम्बा होने के कारण संस्कृत छाया तथा गाथार्थ प्रत्येक गाथा सहित ही लिए है। मूलसूत्र विषयक सूचना : • इस सूत्र की गाथा ३, ९, ११, १३, १५ एवं २८ में परिग्गहम्मी, अणुव्वयम्मी, देसावगासिअम्मी ऐसे दीर्घ ईकारांत पाठ मिलते हैं तथा आगे की गाथा ३४ में काइअस्सा, माणसिअस्सा ऐसे दीर्घ आकारान्त पाठ मिलते हैं। प्राकृत शब्दानुसान अनुसार वहाँ ह्रस्व "म्मि' एवं 'अ' शुद्ध जाना जाता हैं, तो भी छन्दानुसार मात्रा का मेल मिलाने यह पाठ प्रचलित हुआ है ऐसा जान पड़ता हैं। • इसके अलावा और भी अनेक स्थल पर मात्राओं का मिलान करने के लिए दीर्घ-हस्व का परिवर्तन मिलता हैं। जैसे कि संथारूच्चार के बदले संथारुच्चार, तईए के बदले तइए वगैरह। • प्राकृत व्याकरण के प्रमाण से 'अ' एवं 'य' का तथा 'ण' एवं 'न' का परस्पर बदलाव हो सकता है। • गाथा ४३ के आगे 'तस्स धम्मस्स' ये पाठ गद्य में हैं।
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy