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________________ वंदित्तु सूत्र इस तरीके से छः आवश्यक रूप प्रतिक्रमण में यत्न करने से श्रावक को क्या लाभ होता है वह बताते है - २६६ सावओ जइवि बहुरओ होइ श्रावक यद्यपि बहुकर्मरज वाला होता है तो भी। - सम्यग्दृष्टि श्रावक यथाशक्ति पाप से दूर रहने का ही प्रयत्न करता है, पाप करना पड़े तो भी मन से नहीं करता, ऐसा होते हुए भी प्रबल निमित्त कभी उसे पतन के मार्ग पर धकेलते है, एवं न करने योग्य कर्म करवाकर बहुत कर्म बंधवाते हैं, जिस से श्रावक बहुकर्मरज वाला हो जाता है अथवा दूसरे तरीके से विचारें तो अविरत सम्यग्दृष्टि या देशविरतिधर श्रावक भी आरंभ-समारंभ में ही रहता है। इसीलिए अविरति जन्य पाप तो उसे प्रतिक्षण लगता ही है। इससे भी श्रावक कर्मरज वाला होता है। जिज्ञासा : क्या बारह व्रत एवं चौदह नियम से जिसने अपना जीवन संयमित किया हो वैसा श्रावक भी बहुरज वाला हो सकता है ? तृप्ति : बारह व्रत या चौदह नियम भी सागर जितनी अविरति के सामने बिन्दु जितनी विरति के समान हैं। दुनियाभर के पापों में से, श्रावक संकल्प करे तो भी कितने पापों से दूर हो सकता है ? जैसे कि, 'पाँच से अधिक वनस्पति मुझे नहीं खानी', ऐसा नियम लेने वाला श्रावक भी अपने घर के लिए, कुटुंब के लिए एवं खाने-पीने के सिवाय अपने उपभोग के लिए करण, करावण एवं अनुमोदन रूप बहुत सारे वनस्पति जीवों की हिंसा करता है । अत: उसका वनस्पति की हिंसा संबंधी नियम तो सवा वसा जितना भी नहीं एवं अनुमोदना के त्याग की तो उसे प्रतिज्ञा भी नहीं है । स्पष्ट है कि ऐसे श्रावक को भी अविरति का बहुत पाप लगता है। इसलिए ऐसा देशविरतिधर श्रावक भी बहु रजवाला होता है। दुक्खाणमंत किरिअं काही अचिरेण कालेण अल्पकाल में दुःखों का अंत करेगा। 1 - पूर्व में बताये हुए तरीके से श्रावक भले ही बहु पापरूप रजवाला हो तो भी भावपूर्वक की हुई इस क्रिया में ऐसी ताकत है कि दो घड़ी जितने अल्पकाल में भी वह श्रावक के सर्व कर्मों का नाश कर सकती है, क्योंकि जिस तरह रंग राग से भरे हुए संसार की क्रियाओं में कर्मबन्ध करने की शक्ति है, उसी तरह संसार की
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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