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________________ वंदित्तु सूत्र से (३) ईष्ट विषय - संयोग - चिंता : मनोज्ञ वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति हमेशा मिलती ही रहे, वे कभी दूर न हो, हमेशा उनका संयोग हो एवं रहे ऐसी इच्छा 'ईष्ट - विषय - संयोग-चिंता' नामक आर्त्तध्यान प्रगट होता हैं । १७८ (४) निदान की चिंता : निदान का अर्थ है धर्म के बदले में भौतिक सुख पाने की कामना। ‘इस धर्म से मुझे इच्छित अमुक सुख मिले' ऐसी इच्छा निदान कहलाती है । जो जन्मांतर को मानता है उसे 'जन्मांतर में भी मुझे अनुकूल विषय, भोग-सामग्री, धन आदि समृद्धि मिले, ऐसी विचारधारा से 'निदान चिंता' नाम का आर्त्तध्यान उत्पन्न होता है । 1 अनुकूल अर्थी जीवों के लिए आर्त्तध्यान से बचना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि चंचल मन का नियमन बड़े-बड़े शूरवीरों को भी भारी पड़ता है। इसी कारण बहुत बार आर्त्तध्यान में से रौद्रध्यान में जाने की भी संभावना रहती हैं। (ब) रौद्रध्यान : भयंकर या क्रूरता वाले ध्यान को रौद्रध्यान कहते हैं। जिस ध्यान में अशुभ ध्यान की मात्रा इतनी क्लिष्ट और हीन कक्षा की हो कि हिंसा, झूठ, चोरी आदि के पापों की विचारधारा भी शुरू हो जाए वैसे निम्न कक्षा के ध्यान को रौद्रध्यान कहते हैं। उसके भी चार प्रकार हैं - (१) हिंसानुबंधी रौद्रध्यान : जो व्यक्ति अपने सुख में विघ्न करे, उसको कैसे समाप्त करना ? उसको इस रास्ते से कैसे हटाना ? ऐसी अधम विचारणा में मन को लगाए रखना 'हिंसानुबंधी' रौद्रध्यान हैं। : (२) मृषानुबंधी रौद्रध्यान अपने आप को अच्छा दिखाने के लिए, स्वार्थ पूरा करने के लिए, सामने वाले व्यक्ति का क्या होगा उसका विचार किये बिना, किसी भी प्रकार का झूठ बोलने में मन का एकाग्र चिंतन ' मृषानुबंधी ' रौद्रध्यान हैं। (३) स्तेयानुबंधी रौद्रध्यान : अन्य की ज़रूरत का विचार किये बिना अपना घर भरना, अतिलोभ के वश होकर पर-द्रव्य का हरण करना या राज्य के
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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