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________________ १७० वंदित्तु सूत्र रखकर उनके फल, फूल, पत्ते आदि बेचना, अनाज को कूटना, पीसना आदि व्यापार वन कर्म कहलाते हैं। ३) साडी : शकट कर्म । गाड़ी, जहाज, ट्रक, स्टीमर, प्लेन आदि अनेक प्रकार के वाहन या उनके स्पेयर पार्ट्स बनाकर बेचना शकट कर्म है। ऐसे धंधे में वाहनों को बनाने में एवं वाहनों के उपयोग में स्थावर एवं त्रस जीवों की बहुत हिंसा होती हैं। ४) भाडी : भाटक कर्म। गाड़ी, ट्रक, रिक्शा, रेलगाड़ी, स्टीमर, विमान आदि वाहन तथा हाथी, घोड़ा, ऊँट, बैल आदि जानवरों को किराये पर देकर धनोपार्जन करना, ट्रेवल एजंसी चलाना आदि भाटक कर्म हैं। ५) फोडी : स्फोटक कर्म। पृथ्वी, पत्थर आदि फोड़ना, सुरंग बनाना तथा गेहूँ, चना, जव, वगैरह धान्य भुंजना, कुआँ, तालाब, बावड़ी खोदना, खेत जोतना आदि व्यापार को स्फोटक कर्म कहते हैं। इन पाँच प्रकार के व्यापार में अपार हिंसा होने से उनमें अत्यधिक कर्म बंध होता है। इसलिए उन्हें कर्मादान कहते हैं। अत: श्रावक को उन्हें प्रयत्नपूर्वक छोड़ देना चाहिए। अधिक धन की लालसा से या प्रमाद आदि दोषों सहित ऐसे व्यापार करने से सातवें व्रत में दोष लगता हैं। वाणिज्जं चेव दंत-लक्ख-रस-केस-विस-विसयं - दाँत, लाख, रस, बाल एवं विष संबंधी व्यापार (श्रावक को त्याग देना चाहिए)। ६) दंत : दाँत का व्यापार यहाँ दाँत के उपलक्षण से प्राणी के किसी भी अंग का ग्रहण करना है। जैसे नाखून, बाल, हड्डी, रोम, चमड़ी आदि। उत्पत्ति स्थान से हाथी के दाँत, शेर-उल्लू के नाखून, हिरण के सिंग, हिरण, सर्प या अन्य किसी की चमड़ी, गाय की पूँछ के बाल, कस्तूरी, भेड़ बकरी आदि की ऊन, बाघ की मूंछ के बाल या किडनी आदि मनुष्य के अंग, इत्यादि का व्यापार करना ‘दंत-वाणिज्य' नाम का कर्मादान व्यापार कहलाता हैं।
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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