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________________ सातवाँ व्रत गाथा - २२-२३ १६९ व्यवसाय पापारंभ बिना नहीं होता, तो भी पापभीरू श्रावक सोचता है कि 'संसार में हूँ इसलिए धन कमाने के लिए धंधा किए बिना तो गुज़ारा नहीं होगा, परंतु ऐसा धंधा करूँ कि जिससे बड़े पापों से बच सकूँ ।' ऐसा सोचकर श्रावक जिनमें अत्यंत पापारंभ होता हो, पृथ्वी-पानी- अग्नि आदि जीवों की अधिक प्रमाण बहुत में साक्षात् हिंसा होती हो वैसे कर्मादान के धंधे नहीं करता । जिज्ञासा : कर्मादान किसे कहते हैं। तृप्ति : जिस व्यापार से ज्ञानावरणीयादि कर्मों का आदान (ग्रहण) होता हो वैसे व्यापार को कर्मादान व्यापार कहते हैं । जिस व्यापार में पृथ्वी आदि जीवों की बहुत अधिक प्रमाण में हिंसा प्रत्यक्ष दिखाई देती हो, एवं उसी कारण जिस धंधे से विपुल प्रमाण में कर्मों का अर्जन होता हो, वैसे कर्मादान के व्यापारों के शास्त्र में पंद्रह प्रकार बताए हैं जो निम्नोक्त प्रकार के हैं: इंगाली - वण - साडी - भाडी फोडी सुवज्जए कम्मं - अंगार कर्म, वन कर्म, शकट कर्म, भाटक कर्म, स्फोटक कर्म (इन पाँच) कर्मों का पूरी तरह से त्याग करना चाहिए। १) इंगाली : अंगार कर्म । जिसमें अग्नि का उपयोग अधिक प्रमाण में होता हो वैसा व्यापार अंगार कर्म होता है। जैसे-ईंटों को पकाना, कोयला बनाना, चूना पकाना, सुनार का काम, लुहार का धंधा, भट्टी में कपड़े धोना, धातुओं को पिघलाने वाली भट्टी को चलाना, फेब्रिकेशन यूनिट या वेल्डिंग यूनिट (fabrication or welding Unit) अथवा जिस धंधे में बहुत अधिक फरनेसेस (furnaces) का उपयोग होता हो वैसे धंधे आदि अंगार कर्म कहलाते हैं। इसके अलावा मिलें आदि कारखानें या उस प्रकार के उत्पादन केन्द्र (Manufacturing Units) भी अंगार कर्म कहलाते हैं। - २) वण : वन कर्म । जिसमें वनस्पति का छेदन - भेदन मुख्य हो वैसे व्यापार से धन कमाना वन कर्म है। जैसे - जंगल काट डालना, बाड़ी, बाग, बगीचा, नर्सरी, खेत आदि
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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