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________________ पंचम व्रत गाथा-१८ १४३ पडिक्कमे देसि सव्वं - दिन में लगे पाँचवें व्रत संबंधी किसी भी अतिचार का सेवन हुआ हो तो उन सबका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। नौ प्रकार के परिग्रह में प्रमाण निश्चित करने के बाद श्रावक यदि सीधे तरीके से व्रत की मर्यादा से अधिक धनादि रखे तो वह व्रतभंग है, परंतु व्रतकाल में दूसरों के नाम से रखे या उसके प्रमाण में वृद्धि-घटौती करे जैसे कि दो घर का एक घर करे, छोटे बर्तनों को तोड़कर एक बड़ा बर्तन बना दे इत्यादि करे तो व्रत पालने की भावना होने से व्रत भंग नहीं होता। परंतु, व्रत का मुख्य लक्ष्य मूर्छा घटाना है, उसकी सुरक्षा नहीं होने के कारण व्रत मलिन तो होता ही है। इसलिए ऐसी प्रवृत्तियों से अतिचार दोष लगता है। इन पदों द्वारा ऐसे सब अतिचारों को याद करके, उनसे मुक्त होकर व्रत में स्थिर होने रूप प्रतिक्रमण करना हैं। इन दोनों गाथाओं का उच्चारण करते वक्त श्रावक सोचता है कि - 'अपरिग्रहिता आत्मा का स्वभाव है। उसमें ही सुख है, परंतु मैं शरीर, स्वजन आदि के बंधन में बंधा हूँ। इसलिए मैं परिग्रह का सम्पूर्ण त्याग नहीं कर सकता। फिर भी लोभ के कारण बढ़ती हुई मेरी तृष्णा की आग को अंकुश में रखने के लिए ही मैंने परिग्रह परिमाण व्रत को अपनाया हैं। इस व्रत के पालन द्वारा मैं सतत आसक्ति से दूर रहने का प्रयत्न करता हूँ ; तो भी विषय एवं कषाय के अधीन होकर कभी-कभी व्रत में दोष लगे उस प्रकार से धन-धान्यादि के संग्रह की दुष्ट वृत्तियाँ मेरे मन पर सवार हो जाती हैं। कभी-कभी वाणी एवं काया से भी व्रत मालिन्य पैदा हो ऐसा व्यवहार हुआ हैं। उन सबको याद करके उनकी निंदा, गर्दा एवं आलोचना करके उन पापों से मैं वापस लौटता हूँ। प्राणांत कष्ट आने पर भी परिग्रह-परित्याग व्रत को पालनेवाले पेथडशाह, धन सेठ आदि पूर्व के महाश्रावकों के चरणों में मस्तक झुकाकर उनसे प्रार्थना करता हूँ कि आपके जैसे निरतिचार व्रतपालन का सत्त्व मुझ में भी प्रकट हो जिससे मैं भी सुविशुद्ध तरीके से व्रत में स्थिर रह सकूँ ।' चित्तवृत्ति का संस्करण : धन आदि से मुझे सुख मीलता हैं, ऐसी भ्रामक विचार धारा के कारण ही लोभ के वश होकर साधक परिग्रह को मर्यादित नहीं कर पाता । इस गलत ख्याल से
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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