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________________ १२० वंदित्तु सूत्र अवतरणिका: अब प्रमाद के वश होकर जब अप्रशस्त भाव का प्रवर्तन हो तब तीसरे व्रत को मलिन करे, ऐसी कौन सी प्रवृत्तियाँ हो सकती हैं, उसको सूचित करने वाले पाँच अतिचारों की जानकारी इस गाथा में देते हैं। गाथा: तेनाहड-प्पओगे, तप्पडिरूवे विरूद्धगमणे अ। कूडतुल-कूडमाणे, पडिक्कमे देसि सव्वं ।।१४ ।। अन्वय सहित संस्कृत छाया : स्तेनाहृत-प्रयोगे, तत्प्रतिरूपे विरुद्धगमने च। कूटतुला-कूटमाने, दैवसिकं सर्व प्रतिक्रामामि ।।१४।। गाथार्थ : १) चोरी करके लाई हुई वस्तु का स्वीकार करना, २) चोर को चोरी के लिए प्रेरणा देना, ३) मूल्यवान वस्तु में अल्प मूल्यवान वस्तु मिलाना, ४) राज्य विरूद्ध काम करना एवं ५) गलत तौल और माप से लेना-देना। तीसरे व्रत के इन पाँच अतिचारों में से दिन भर में जो कोई भी अतिचार लगे हों उन सबका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। विशेषार्थ : इस व्रत को स्वीकार करने वाले श्रावक ने चोरी की भयंकरता का विचार करके अपना मन ऐसा तैयार किया होता है कि प्रायः जो चीज अपनी ना हो उस पर अपनी नजर पड़े ही नहीं। ऐसा होते हुए भी प्रमाद में पड़ा हुआ श्रावक कभी लोभ के अधीन हो जाए तब उससे सीधे तरीके से नहीं परंतु तोडमोड़कर चोरी जैसा व्रत को दूषित करने वाला कार्य हो जाता है। ऐसा कार्य सामान्यतया इन पाँच प्रकार से होता है: तेनाहड-प्पओगे-चोरी की हुई वस्तु का स्वीकार करना या चोर को प्रेरणा देना।
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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