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________________ १०४ सूत्र संवेदना सुहराई/सुहदेवसी ? : आप की रात्रि या दिवस सुखपूर्वक व्यतीत हुए हैं ? संयमी आत्मा का रात-दिन सुखपूर्वक बीता हुआ तभी कहलाता है कि, जब दिनभर में संयम जीवन के अनुकूल स्वाध्याय आदि की प्रवृत्तियाँ सुखपूर्वक हुई हो । दिन के समय भगवान की आज्ञानुसार वाचनादि स्वरूप सुंदर स्वाध्याय किया हो, जरूरत पड़ने पर निर्दोष आहार लाकर संयम साधक देह को रागादि के बिना पोषण दिया हो एवं उसके अतिक्ति पडिलेहण . प्रतिक्रमणादि संयमजीवन की क्रियाएँ भी यथायोग्य रीति से की हो, तो ही साधु का दिन सुखपूर्वक व्यतीत हुआ है, ऐसा कह सकते हैं। __ रात्रि के स्वाध्याय-ध्यान-वैयावच्चादि कार्य करने के बाद, जब शरीर का श्रम साधना में बाधक बने तब, अगर साधक ने संथारा पोरिसी का भावपूर्वक पठन करके, शरीर के श्रम को दूर करने के लिए ही निद्रा ली हो, निद्रा के समय भी यतना का परिणाम ज्वलंत रखा हो और इसीलिए करवट बदलते हुए भी प्रमार्जनादि की हो एवं श्रम दूर होने पर तुरंत उठकर फिर से संयम योगों में अप्रमाद भाव से प्रवृत्त हुआ हो, तो रात्रि सुखपूर्वक बीती है ऐसा कहा जा सकता है । इस प्रकार गुरु भगवंत को दिवस एवं रात्रि संबंधी सामान्य पृच्छा कर, अब विशेष पृच्छा करने के लिए शिष्य पूछता है कि सुखतप : भगवंत ! आपका तप सुखपूर्वक चल रहा है ? संयम जीवन के लिए बाह्य एवं अभ्यंतर दोनों प्रकार के तप अति महत्व पूर्ण हैं, इसलिए भक्त साधक गुरु भगवंत से पूछता है कि - हे भगवंत । आपका तप सुखपूर्वक चल रहा है ? सुखपूर्वक अर्थात् शरीर को सुख मिले ऐसा नहीं, परन्तु महाआनंद स्वरूप मोक्ष के अनुकूल आनंद का परिणाम पैदा करवाने वाला तप चल रहा है ?
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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