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________________ इच्छकार सूत्र अन्वय सहित शब्दार्थ : इच्छकार ! सुहराई / सुहदेवसि ? हे गुरुजी ! आपकी इच्छा हो तो पूछता हूँ कि 'आपकी रात्रि/दिवस सुख में बीता है ?' सुखतप? आपका तप सुखपूर्वक चल रहा है ? ,, शरीर-निराबाध ? आपका शरीर रोग रहित है ? संजम-जात्रा-सुख-निर्वहो छो जी ? संयम यात्रा में आप सुखपूर्वक क्रियाशील हैं ? स्वामी ! शाता छे जी ? हे स्वामी आपको सुखशाता है ? भात-पाणीनो लाभ देजो जी अन्न-पानी का लाभ दीजिएगा ? (यह सूत्र मिश्र गुजराती भाषा में है, इसलिए इसकी संस्कृत छाया नहीं दी है ।) विशेषार्थ : इच्छकार ! : हे गुरुदेव ! आपकी इच्छा हो तो पूछू यहाँ 'इच्छकार' शब्द संबोधन में प्रयोग हुआ है इसका अर्थ होता है, “हे गुरु भगवंत !" । शिष्य को गुरु भगवंत के प्रति अत्यन्त आदर एवं बहुमान होता है । अतः वह ‘इच्छकार' शब्द द्वारा अत्यंत विनय से पूछता है, 'हे भगवंत! आपके विषय में कुछ पूछना चाहता हूँ । आपकी इच्छा हो, अनुकूलता हो एवं आपके स्वाध्याय में किसी प्रकार से अवरोध न होता हो, तो मैं आपसे कुछ पूछू ? 2. “इच्छकारी" अर्थात् अपनी इच्छा से, यहां लोक रूढि से इच्छकारी के बदले इच्छकार बोला जाता है एवं भगवंत शब्द अध्याहार है ।
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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