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________________ जगत. 12 ॥ जगत. ॥3॥ मनुष्य की जैसी जिंदगानी, अभी तुं चेत अभिमानी, जीवन का क्या भरोसा है, करी ले धर्म की करणी खजाना माल ने मंदिर, क्युं कहेता मेरा मेरा तुं, यहाँ सब छोड जाना है, न आवे साथ कुछ तेरे कुटुंब परिवार सुत दारा, सुपन सम देख जग सारा, निकल जब हंस जावेगा, उसी दिन है सभी न्यारा तरे संसार सागर को, जपे जो नाम जिनवर को, कहे खान्ति येही प्राणी हटावे कर्म जंजीर को जगत. ||4|| जगत. ||5|| जुओ रे ।। 1 || जुओ रे ।। 2 ।। जुओ रे ।। 3 ।। जुओ रे ।। 4 || आ) महापुरूषों की सज्झाय जुओ रे जुओ जैनो, केवा व्रतधारी, केवा व्रतधारी, आगे थया नर नारी, थया नर नारी, तेने वंदना हमारी ... जुओ जुओ जंबुस्वामी, बालवये बोधपामी, तजी भोग ऋद्धि जेने, तजी आठ नारी... तजी आठ नारी... गजसुकुमाल मुनि, धखे सिर पर धूणी, अडग रह्या ते ध्याने, डग्या न लगारी... डग्या न लगारी... कोश्याना मंदिर मध्ये, रह्या मुनि स्थुलीभद्र वेश्या संग वासो तोये, थया न विकारी... थया न विकारी... कीधां उपसर्ग मघवे, सह्यां ए तो कामदेवे रह्यां पडिमां मा ध्याने, चल्या ना लगारी... चल्या न लगारी... सती ते राजुलनारी, जग मां न जोडी एनी, पतिव्रत काजे कन्या, रही ते कुंवारी... रही ते कुंवारी... जनकसुता जे सीता, बार वर्ष वनमां वीत्या, घणुं कष्ट वेठ्यु तोये, डग्या न लगारी... डग्या न लगारी... धन्य धन्य नर नारी, थया एवा टेकधारी, जीवित सुधार्यु जेणे, पाम्या भवपारी... पाम्या भवपारी... अर्बु जाणी सुज्ञ जैनो, एवा उत्तम आप बनो, वीर विजय धर्म प्रेमे, दीओ गति सारी ... दीओ गति सारी... जुओ रे ।। 5 || जुओ रे ।। 6 || जुओ रे ।। 7 ॥ जुओ रे ।। 8 ॥ जुओ रे ॥ 9 ॥
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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