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________________ E. स्तुति || 1 || अ) श्री आदिनाथ जिन स्तुति आदि जिनवर राया, जास सोवन्न काया, मरुदेवी माया, धोरी लंछन पाया, जगत स्थिति निपाया, शुद्ध चारित्र पाया, केवलसिरी राया, मोक्ष नगरे सिधाया सवि जिन सुखकारी, मोह मिथ्या निवारी, दुर्गति दुःख भारी, शोक संताप वारी, श्रेणी क्षपक सुधारी, केवलानंत धारी, नमिये नरनारी, जेह विश्वोपकारी समवसरणे बेठा, लागे जे जिनजी मीठा, करे गणप पइट्ठा, इन्द्र चन्द्रादि दिट्ठा, द्वादशांगी वरिठ्ठा, गुंथतां टाले रिट्ठा, भविजन होय हिट्ठा , देखि पुण्ये गरिट्ठा सुर समकित वंता , जेह ऋद्धे महंता, जेह सज्जन संता, टालिये मुज चिंता, जिनवर सेवंता, विघ्न वारे दूरंता, जिन उत्तम थुणंता, पद्मने सुख दिता ।। 2 ।। ।। 3 ।। || 4 || || 1 || आ) श्री शांतिनाथ जिन स्तुति वंदो जिन शांति, जास सोवन्न कांति, टाले भव भ्रांति, मोह मिथ्यात्व शांति, . द्रव्य भाव अरि पांति, तास करता निकांति, धरता मन खांति, शोक संताप वांति. दोय जिनवर नीला, दोय धोला सुशीला, दोय रक्त रंगीला, काढता कर्म कीला, न करे कोई हीला, दोय श्याम सलीला, सोल स्वामीजी पीला, आपजो मोक्ष लीला जिनवरनी वाणी मोहबल्ली कृपाणी, सूत्रे देवाजी, साधुने योग्य जाणी। अरथे गूंथाणी, देव मनुष्य प्राणी, प्रणम हित आणी, मोक्षणी ए निशाणी।। वाघेसरी देवी, हर्ष हियडे धरेवी, जिनवर पय सेवी, सार श्रद्धा वरेवी। जे नित्य समरेवी, दुःख तेहना हरेवी, पद्म विजय कहेवी, भव्य संताप खेवी।। ||2|| ।। 3 ।। ||4|| E सज्झाय अ) स्वार्थ का साथी जगत है स्वार्थ का साथी, समझ ले कौन है अपना, ये काया काँचका कुंभा, नाहक तुं देखके फूलता, पलक में फूट जावेगा, पता ज्युं डालसे गिरता जगत. ||1 || (12)
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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