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[चैत्यवंदन भाष्य] चउ तस्स उत्तरीकरण-पमुह सद्धाइया य पण हेऊ । वेयावच्चगरत्ताइ तिन्नि इअ हेउ बारसगं ॥५४॥ अन्नत्थयाइ बारस, आगारा एवमाइया चउरो। अगणी पणिदिछिंदण, बोहीखोभाइ डको अ॥ ५५॥ घोडग लय खंभाई,मालुद्धी निअल सबरि खलिण वह। लंबुत्तर थण संजइ, भमुहंगुलि वायस कविट्ठो ॥५६॥ सिरकंप मूअ वारुणि, पेहत्ति चइज्ज दोस उस्सग्गे। लंबुत्तर थण संजइ, न दोस समणीण सवहु सहीणं५७ इरिउस्सग्गपमाणं, पणवीसुस्सास अट्ठ सेसेसु । गंभीर महुरसदं, महत्थजुत्तं हवइ थुत्तं ॥ ५८॥ पडिकमणे चेइय जिमण, चरम पडिकमणसुअण पडिबोहे चिइवंदण इस जश्णो, सत्त उ वेला अहोरत्ते ॥५९॥ पडिकमओ गिहिणोवि हु, सगवेला पंचवेल इयरस्स। पूआसु तिसंझासु अ, होइ तिवेला जहन्नेणं ॥ ६॥ तंबोल पाण भोयणु-वाणह मेहुन्न सुअण निट्ठवणं । मुत्तु-चारं जूअं, वज्जे जिणनाहजगईए ॥ ६१ ॥ इरि नमुकार नमुत्थुण-रिहंत थुइ लोग सव्व थुइ पुक्ख थुइ सिद्धा वेया थुइ, नमुत्थु जावंति थय जयवी ॥३२॥ सव्वोवाहिविसुद्धं, एवं जो वंदए सया देवे। देविंदविंद महिअं, परमपयं पावइ लहुं सो ॥ ३ ॥
... -समाप्तम्