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________________ (३०) तृष नूख, नागं कुरिय सरीसां पुःख ॥ मधुरी वाणी सुणी जब कान, मधुर पणुं नहि कहेने मान ॥३०॥ सरस कवण कहीये सूखडी, जेणे खाधे नांगे नूख डी। जिनवर वाणी निसुण, जाम, ते विपरीत व खाणे ताम ॥ ३१ ॥ जे शेलडी सरस रस घडी, ते पण कहेने चित्ते नवि चडी ॥ नाति अने उनाति दे खवे, गोल खांग खारी लेखवे ॥ ३३ ॥ सुधा मुधा सवि कहे मन थाय, साकर कांकर सम तोलाय ॥नी ली जाख न गमे सराख, एकज मीठी जिननी जाख ॥३३ ॥ इसी वाणी जिन मुखे उच्चरी, गोयम बो लाव्यो हित करी, एकज जीव लहे फुःख घणां, सुण गोंयम कारण तेह तणां ॥ ३४ ॥ जीव विणासे जंपे अली, जे नर परधन चोरे वली ॥ परनारीशुं रंगे रमे, पाप परिग्रह काको गमे ॥ ३५ ॥रात्रि दिवस रीशे धडहडे, अनिमाने मानवने नमें । कोश तणो णे आकार, नीचा नमणा नहिं लगार ।। ३६ ।। मुखमीठो मन माया करे, कहो ते किम जवसागर तरे॥ हियडे नितुरो वयण कठगेर, पापी पाप करे अति घोर ॥३७॥ जोवे बिज कुमतिनो धणी, मनमां मूळ धरे अति घ पी जे अधमाधम विण अपराध, गोठे बेगे निदे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005369
Book TitleKarmvipak athwa Jambu Prucchano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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