SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७६ शत्रुजयमाहात्म्य. जोगो सर्पनी फणासरखा , तथा था जीवित जलबिंदु सर . वली दणमां जे मनोहर लागे , तेज बीजी क्षणे जयंकर लागे . माटे तत्वथी आ संसारमा कं पण स्थिर वस्तु नथी. वली था संसाररूपी केदखानामां विछानो पण प्रमादथी कुटुंब, अव्य श्रादिक पाशोथी बंधाय . वली था जवरूपी समुजमां विषयरूपी वंटोलीयाथी चित्रावेलीनी पेठे को विरलाज बाधा पामता नथी. एवी रीते प्रजुनी देशनानी वाणीरूपी अमृतने पीने, तथा उःखरूपी विषने तजीने, चक्री हर्षथी प्रजुने कडेवा लाग्या के, हे खामी ! था समस्त जगत कर्मने आधिन , तो था साउ हजार पुत्रोए एकी वखते एवं कयुं कर्म बांध्यु हतुं ? के जेथी तेउनु एकी वखते मृत्यु थयुं ? एवी रीते चक्रीए पुरवायी ज्ञानथी दीठेल , चराचरनो खनाव जेणे एवा प्रनु, कर्मबंधनना कारणरूप एवा तेउना नवोनुं वर्णन करवा लाग्या के, कोश्क पसीमां ते सघला चोरीथी श्राजीविका चलावनारा, तथा उर्ध्यानमा रहेनारा निहोहता. एक दहाडो नदिलपुरथी कोश्क अव्यवान संघ शत्रुजयप्रते जतो हतो, तेने तेजेए जोयो. त्यारे ते बुंटाराउँए ठराव कयों के, श्राजे संध्याकाले श्रापणे श्रा संघने खुंटवो. ते ठराव ते साठ हजार निरोए कबुल राख्यो, त्यारे एक जक खनावी कुंजार कहेवा लाग्यो के, था तमारा विचारने धिक्कार !! केम के श्रापणी पासे सैन्य, धन विगेरे घणुं बे, बतां था यात्रालुउँने शामाटे थापणे खुंटवा जोशए? श्रापणने पूर्वजवना पापोथी श्रावो नगरो जन्म मलेलो ,अने वली पण आ संघनी लुटना पापथी थापणी कोण जाणे केवी गति थशे ? वली श्रा यात्रालु पुण्यानुबंधि पुण्यथी श्रा जन्ममां पण महा दानेश्वरी थया , तथा था तीर्थराजनी यात्राथी फरीने पण सुखीया थशे.वली हे ना! तमो मने सर्वथा कायर थने बी. कण जले कहो? तोपण हुं ते कार्य माटे तमारी साथे श्रावीश नहीं, तेम तमोने ते माटे सल्लाह पण थापीश नहीं. एवी रीते बोलता ते कुंजारने तेउये केदखानामांधी जेम, तेम पोताना स्थानकथी बहार कहाडी मेव्यो, पड़ी ते बुच्चाउँए एकग थश्ने संघ,नजदीक श्राववाथी तेने लुंटी लीधो. ते निहोना तुटी पडवाथी, उराचारथी जेम यशो, तथा चुगलीपणाथी जेम उत्तम गुणो, तेम संघना लोको दिशा दिशा प्रते नाशी गया. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy