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________________ षष्टःसर्गः कुरा सरखं, तथा पूर्णिमाना चंड सरखं तेमना मस्तकपर बत्र शोजतुं हतुं. वली तेनां मुखरूपी चंनी सेवा माटे जाणे बे चकोरोज प्राप्त थया होय नहीं, तेम तेने वीजातां गंगानां मोजां सरखां बे चामरो शोजतां हता. हवे अगाडी चालता सुनटोथी जय जय शब्द उच्चारण कराते बते, गवैया रागरागणी गाते बते, पाबल कुलस्त्री धवलमंगल गाते बते, पुण्योथी जेमतेम गणधरोथी, संगत थएला, तथा सर्व शोजावाला देवालयनी पाउल चालता चक्रीए संघ, देव, श्रने असुरो सहित नगरीमा प्रवेश कर्यो. पड़ी नगरनां मुख्य चैत्योमा श्री युगादीश प्रजुने नमीने, तथा गुरुजने पण वांदीने चक्री पोताने स्थानके गया. पली देह प्रते जेम श्रात्मा, वादलांप्रते जेम चंड, मेघप्रते जेम पाणी, खर्गप्रते जेम इंस, दिवसप्रते जेम सूर्य, देवालय प्रते जेम देव, पुष्पप्रते जेम सुगंधि, तथा कुलीनप्रते जेम सगुणो तेम चक्री उत्सवयुक्त मेहेलमां दाखल थया. पनी यदो, राजा, विद्याधरो, तथा शेठ शाहुकार श्रादिको, मेहेलमा रहेला चंद्रकांत मणिनां किरणोथी स्फुरायमान मुखरूपी चंजनी कलावाला तथा हारमा रहेला मोती रूपी ताराउँवाला ते चकीने हर्षथी पोतानां कल्याण माटे, देवोनां समूहो जेम इंजने तेम ह. मेशां नमस्कार करवा लाग्या. एवी रीते श्राचार्य महाराज श्री धनेश्वर सूरिजीए बनावेला महा तीर्थ श्री शत्रुजयनां महात्म्यमां श्री जरत चक्रीनी तीर्थयात्रा, तथा तीर्थोझारनां वर्णननो पांचमो सर्ग समाप्त थयो. श्रीरस्तु. षष्टः सर्गः प्रारभ्यते. अनंत, अप्रकट मूर्तिवाला, जगतनां सकल विद्यमान, जावी, तथा चूत अर्थोथी मुकाएला, सर्वज्ञ, सर्व जोनारा, सघला लोकोथी नमाएला, साधुऊनां समूहोथी स्तुति कराएला, अक्षय, कर्मोथी रहित,वचन मार्गने उलंगीने मोक्षमा रहेनारा, तथा पुण्यथी मली शके एवा श्री युगादीश प्रजु तमोने हमेशां मंगल आपो? ___ श्री वीरप्रजु इंजने कहे जे के, हे इं! कोंने अमृत सर, तथा मोक्ष प्राप्त करावनारुं तेज चक्रीनुं हजु तुं चरित्र सांजल ? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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