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________________ १७० शत्रुजय माहात्म्य. हवे पुंडरिक महाराज पण त्यां पांच क्रोड मुनिउँथी वीटाया थका चं उनी पेठे समता धारीने रह्या. तथा ते मुनिउँने परम वैराग्यरूपी अमृत तथी जरेली वाणी कहेवा लाग्या के, क्षेत्रानुजावधी था गिरि मोक्षसुखनां स्थानकरूप बे; अने कषायरूपी शत्रुउने जीतवामाटे किरासमान . हवे श्रापणे श्रहीं मोदनां कारणरूप संलेखना करवी; ते संलेखना - व्यथी श्रने जावथी, एम बे प्रकारनी . सघला उन्माद, तथा महारो गनां कारणरूप एवी सर्व धातुउनुं चारे बाजुथी जे शोषवं; तेने अव्य संलेखना मानेली . मोह अने मात्सर्यवाला रागळेषादिक कषायोनो समताथी जे बेद करवो, तेने नाव संलेखना कहेली . एम कहीने पुंड. रिकजी महाराज ते साधु सहित सघला सूक्ष्म अने बादर अतिचारोने श्रालोचवा लाग्या. वली तेमणे फरीने पण पोतानां महाव्रतोने दृढ का; केम के, वारंवार अग्निनो ताप सुवर्णनी शुद्धिमाटे थाय ने. चोंत्रीस अ. तिशयोवाला, मोतीसरखी निर्मल कांतिवाला तथा त्रणे लोकनां खामी एवा सर्व जिनेश्वरो अमोने शरणारूप था ? अनंत अने अक्ष्य स्थानप्रते प्राप्त थयेला, परवालांसरखी कांतिवाला, अने पंदर नेदे सिक थएला सिको अमोने शरणारूप था? महाव्रतोने धरनारा, धीर, सावद्यनां श्राश्रयविनानां, इंसनीलमणिसरखी कांतिवाला एवा मुनि श्रमोने शरणारूप था? केवली प्रजुए कहेलो, सर्व दयामय, तथा स्फटिकोपल सरखो तंजारहित एवो धर्म अमोने शरणारूप था ? वली चोरासी लाख जीवायोनि मांहें जे कंई उष्कृत थयुं होय, ते सघg श्रमारं अपुनःक्रिया पूर्वक मिथ्या था ? वली अज्ञानताश्री जेअढार पापस्थानको सेव्यां होय, ते सघलांउने त्रिकरणशुद्धिथी वोसरा, बु. वली एकेडियादिक सर्व जंतुउने हुँ खमाबु ढुं; अने ते पण वैररहित एवा हुं प्रते दमा करो ? वली कर्मोथी था संसारमा नमता एवा सर्व प्राणी प्रते मने मित्रा ; हूं एकलोज ९; मारु कोश्नथी; अने था मारा आत्माने अरिहंत प्रजुनुं श. रणुं बे. एटबुं कहीने पुंडरिकजी महाराजे सघला साधुउनी साथे पु. कर निराकार अनशन अंगीकार कर्यु. एवी रीते ते दपकश्रेणिपर च. ड्या; अने त्यां जीर्ण दोरडांनी पेठे चारे बाजुएथी तेमनां तथा पांच कोड Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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