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________________ (१०२) देवविषयोना संबन्धे जैनधर्मनो प्रमाण तरीके मानेलो मत एज तेनामां पहेली मोटी महत्वनी बात छे. आ दृष्टिथी विचार करी जोतां जैनधर्म एटले मनुष्योत्सारी ( नरथी नारायण सुधी चढेलो) धर्म ठरे छे. वैदिक धर्म अने ब्राह्मणधर्म ए पण मनुष्योसारी छे खरा, पण ते वास्तोमां पण ते जैनधर्मथी केवळ औपाचारिकन छे. कारण के तेओमां देव एटले कोई मनुष्यातीत प्राणी छे, अने तेने आपणा मंत्रोथी वश करीने आपणी इष्ट प्राप्ति करी लेवाय छे एबुं मानी लीधेलुं छे. पण खरं मनुष्योत्सारी पणं जैनधर्ममा अने बौद्धधर्ममांज देखाई आवे छे. आगल जातां मात्र बौद्धधर्मनुं ईश्वरविषयकमत मूळ कल्पनाथी घणो जुदो बनी गयो छे. शिवाय आ बावतमां मूल बौद्धमत पण घणोज आगळ गएलो होवाने लीधे मूळमांज ते अनीश्वरवादी हतो के केम ? एवो संशय उत्पन्न थई जाय छे. जैनोनी देवविषयक कल्पना विचारी मनुष्योना मनमा स्वाभाविक रीते आवी शके तेवी छे. तेओना मतमां देव ए परमात्मा छे पण ईश्वर नथी एटले जगत्नो स्रष्टा अने नियन्ता नथी पण ते पूर्णावस्थाने पहोंचेलो जीवज होईने अपूर्णावस्थावाळानी पेठे जगत्मां पाछो आववानो अशक्य होवाने लीधे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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