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________________ (५१) ने उपरयी आपणे उपर प्रमाणे अनुमान करी शकीए छीए. एथी उलटुं ए ग्रन्थोमां कोई पण स्थले एवो उल्लेख के सूचन सरखं पण थएलु जोवामां नथी आवतुं के निर्ग्रन्योनो संप्रदाय ए एक नवीन संप्रदाय छे. आ उपरथी आपणे अनुमान करी शकीए छीए के निग्रन्यो बुद्धना जन्म पहेलां घणा लांबा काळ्थी अस्तित्व धरावता हशे. आ अनुमानने बीजी एक बाबतद्वारा पण टेको मळे छे. बुद्ध अने महावीरना समकालीन एवा मंखलि गोशाले मनुष्य जातिनी छ वर्गामां वहेचणी करी हती बुद्धघोषना कहेवा मुजब आ छ वर्गमांना त्रीजा वर्गमां निम्रन्थोनो समावेश करवामां भाव्यो हतो. हवे विचारीए के निर्ग्रन्थो जो तेज अरसामाह्यातीमा आल्या होत तो तेमनी गणना एक खास एटले के मनुष्यजातिना एक स्वतंत्र-पेटाविभाग तरीके कदापि न करवामां आवी होत. १ दीघनिकाय, सामफलसुत्त २०. २ सुमंगलविलासिनी पृ. १६२ मां बुद्धघोष स्पष्ट जणावे छे के मोशाले पोताना शिष्यो जे चतुर्थवर्गना हता तेना करतां निम्रन्थोने हलकी प्रतिना गण्या छे. गोशाले तो भिक्षुओने तेथीए हलका प्रकारना गण्या छे के जे बाबत टपर बुद्धघोषे लक्ष्य आप्यु नथी. ते उपरथी स्पष्ट जणाय छे के आ भिक्षुओने बौद्धसाधुओ करतां ते भिक मानतो हतो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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