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________________ (१०) कर्या हतो, तेम आपणे मानवं जोईए. आ कल्पनानुसार आपणे श्वेताम्बर अने दिगंबर संप्रदायरूपी बे फिरकानी उत्पत्तिनुं मूळकारण पण बतावी शकीए छीए, के जेना संबंधमां श्वेताम्बर अने दिगम्बर बन्ने संप्रदायमां भिन्न भिन्न अने परस्परविरोधी दंतकथाओ प्रचलित छे.' आ भेद देखीती रीतेज काइ आकस्मिक थयो नहतो; परन्तु असलनो एक मतभेद [ उदाहरण तरीके जेवो के श्वेताम्बरमतना केटलाक गच्छोनी वच्चे अत्यारे ए हयाती धरावे छे. ] काले करीने विभागना रूपमा परिणत थयो अने आखरे तेणे एक महान् धर्मभेदनुं रूप लीधुं. बौद्धग्रन्थोमां मळी आवता उल्लेखो, नातपुत्तनी पूर्वे पण निम्रन्थोनी हयाती हती, ए प्रकारना आपणा विचारने दृढ करे छे. ज्यारे बौद्धधर्मनो प्रादुर्भाव थयो त्यारे निम्रन्थोनो संप्रदाय एक मोटा संप्रदायरूपे गणातो होवो जोईए. ए निर्ग्रन्थोमांना केटलाकने बौद्धपिटकोमां, बुद्धना अने तेना शिष्योना विरोधी तरीके अने वळी केटलाकने तेना अनुयायी थएला तरीके वर्णवेला छे, के 1. १ श्वेताम्बर अने दिगम्बर संप्रदायोनी उत्पत्तिना संबंधमां जर्मन भोरिएन्टल :सोसायटीना जर्नलना ३८ मा भागमा प्रकट थएलो मारो निबंध जूनो.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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