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________________ ( ३४ ) ए बात तो हवे सर्वसम्मत थई चुकी छे के नातपुत्त (ज्ञातपुत्र) जे साधारण रीते महावीर अथवा वर्द्धमानना नामे ओळखाय छे ते बुद्धना समकालीन हता. निगंठो ( निग्रंथो ) जे हालमां "जैन अथवा आर्हतना नामथी वधारे प्रसिद्ध छे, तेओ ज्यारे बौद्ध धर्म स्थपाई रह्यो हतो त्यारे एक महत्वशाली संप्रदायतरीके क्यारनाए प्रसिद्ध थई चूक्या हता. परंतु हनी ए प्रश्ननुं निराकरण थवं बाकी रह्युं छे के ए प्राचीननिग्रंथोनो धर्म, ते खास करीने वर्तमान जैनोना आगमो अने बीजा ग्रन्थोमां जे वर्णवेलो छे तेज़ हतो, के सिद्धांतो पुस्तकारूढ थया त्यां सुधीना समयमां यो रूपांतरित थई गयो हतो ! आ प्रश्ननुं निराकरण करवा माटे, अत्यार सुधीमां प्रकट थला बधा बौद्ध ग्रन्थोमां, जेमने आपणे सौथी जुना समजीए छीए तेमांथी जैन निग्गन्ठो, तेमना सिद्धान्तो अने तेमना धार्मिक १३ निगंठ ए स्पष्टरूपे मूळरूपज होय एम जणाय हे. कारण के "अशोकना शिलालेखोमां, पालीमा अने केटलीक वखते जैन ग्रंथोमां पण एज रूपे मळी आवे छे, पण आ त्रणे बोलीओना स्वरशास्त्राना नियमो प्रमाणे तो तेनुं वधारे वास्तविकरूप 'निग्गन्थ ' एवं थयुं जोईए अने आवुं रूप जैनग्रन्थोमां स्वीकारेलं पण मळी आवे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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