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________________ (३३) आलोचना प्रकट करी छे.” अने छेवटे भांडारकरे संपूर्ण जैनधर्मनी एक महत्वनी अने घणी उपयोगी रूपरेखा आलेखी प्रसिद्धिमा मुकी छे." आ रीते, आपणा जैनधर्मविषयक ज्ञानमां थएला वधाराओए (जेमांना मात्र खास नोंधवा लायक ग्रन्थोनो ज में अहीं उल्लेख को छे ) आ आखा विषय उपर एटलं बधुं अजवाळू पाडयुं छे के जेथी हवे मात्र कल्पनाने आ विषयमा घणोज थोडो अवकाश रहेशे. अने ऐतिहासिक तेमज भाषाविज्ञानात्मक साची पद्धति, ते साहित्यना सबळा भागोने लागु पाडी शकाशे, तेम छतां हनी केटलाक मुख्य प्रश्नोना खुलासा करवा बाकी रह्या छे, तथा जे निराकरणो आ अगाउ थई गयां छे ते हनी बधा विद्वानोने मान्य थयां नथी, तेथी आ सुअवसरनो लाभ लई आनंदपूर्वक हुँ अहीं केटलाक विवादग्रस्त मुद्दाओनुं स्पष्टीकरण करवा इच्छु छु. आ मुद्दाओना खुलाशाओ माटे आज पुस्तकमा भाषांतरित थएला सूत्रोमांथी वणी किंमती सहायता मळी शके तेम छे. 99 Uber die Indische Secte der Jaina, Wien 1881.. १२ रीपोर्ट सन १८८३-८४. :.... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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