SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 289
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२४) गने कोई कारण जणातुं नयी कारण के अंगोनी प्रमाणिकता ते कांई पूर्वोने लईने मानवामां आवती नथी. अंगो तो जगतना निर्माणना समकालीन (एटले अनादीज) मनाय छे. तेथी जो पूर्वो संबंधी आ परंपराने मात्र एक कूटलेख रूपेज मानीए तो तेनो कांई पण अर्थ थई शके नहीं परन्तु तेने जो सत्यरूपे मानी लईए तो जैनसाहित्यना विकासविषयक आपणा विचारो साथे ते बराबर बंध बेसती आवी जाय छे. ' पूर्व ' ए नामज ए वातनी पूरेपूरी साक्षी आपे छे के तेनुं स्थान पाछळथी बीजा एक नवा सिद्धांते लीधुं हतुं. अर्थात् पूर्वनो अर्थ पहेलानुं एवो थाय छे.' अने आ दृष्टिए ज्यारे आपणे विचारीए छीए त्यारे निःसंदेहरीते प्रतीत थाय छे के जे समये पाटलीपुत्रना संघे अंगसाहित्य एकत्र कर्यु हतुं, तेज समयथी पूर्वानुं ज्ञान व्युच्छिन्न थतुं चाल्युं हतुं, एवी जे हकीकत कहेवाय छे ते तद्दन वास्तविक छे. उदाहरण तरीके भद्रबाहु पछी चौदमांथी दशन पूर्वोतुं ज्ञान अव १ 'पूर्व' शब्दनो अर्थ जैनाचार्योए नीचे मुजब समजावेलो ---- तीर्थकरे पोतेज प्रथम पोताना गणधरनामे प्रसिद्ध शिष्योने पूर्वोनुं ज्ञान • आप्यु हतुं, त्यार पछी गणधरोए अंगोनी रचना करी. आ कथन, पहेलाज तीर्थकरे अंगो प्ररूपेलां छे एवा आग्रह साथे जेटले अंशे ऐक्य धरावतुं नथी - तेटले अंशे ते खरेखर सत्यगर्भित लेखावा योग्य छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy