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________________ ( १८०) भावार्थ-तप १ संयम २ सत्य ३ ब्रह्मचर्य ४ अचौर्यता ५ निरभिमानता ६ सरळता ७ अपरिग्रहता - निर्लोमता ९ अने क्षमा १० ए दश प्रकारनो यतिधर्म जेमनो कहेलो जयवंतो क्त्तें छे. एवो ते एकन जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ ॥ १८ ॥ अहो विष्टपाधारभूता धरित्री निरालम्बनाधारमुक्ता यदास्ते । अचिन्त्यैव यद्धर्मशक्तिः परा सा स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः ॥ १९ ॥ भावार्थ-अहो इति आश्चर्ये जगत्ने आधारभूत आ गृथ्वी आलम्बन अने आधार विना रही छे ते पण जेमना कहेला दश प्रकारना यति धर्मनीन अचिन्त्य शक्ति छे. एवो ते एकन जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ ॥ १९ ॥ न चाऽम्भोधिराप्लावयेद् भूतधात्री समाश्वासयत्येव कालेऽम्बुवाहः । यदुद्भूतसद्धर्मसाम्राज्यवश्यः स एकः परात्मा गति जिनेन्द्रः ॥ २०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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