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________________ जला ( १७९ ) भावार्थ — जेमनो शस्त्रादियी छेद, करवतादिथी भेद, दिथी आर्द्रपणु, खेद, शोष, दाह, ताप, आपत्ति, सुख, दुःख, वांछादि पण नथी एवो ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ ॥ १६ ॥ न योगा न रोगा न चोद्वेगवेगाः स्थितिर्नो गतिर्नो न मृत्युर्न जन्म | न पुण्यं न पापं न यस्याऽस्ति बन्धः स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः ॥ १७ ॥ भावार्थ – मन, वचन अने कायाना योगो, चित्तोद्वेग, आयुःस्थिति, भवान्तरगति, मरण अने पाप, तेमज कर्मनो बन्ध, ए सर्व प्रकार पण जेमने एवो ते एकञ जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याण माटे थाओ ॥ १७ ॥ Jain Education International अने रोगो, जन्म, पुण्य, रहेलो नयी तर्पः संयमः नृतं ब्रह्मे शौच मृदुत्ववाँकिञ्चनत्वार्निं मुक्तिः । क्षमै यदुक्तो जयत्येव धर्मः स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः ॥ १८ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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